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________________ ४९ अजितसेनने राजभार सांपी हरिषेण अने प्रीतिमती विश्वभूति तापसना आश्रममां तापस बनीने रहयां अने ते पछी चार-9 महिनामां ऋषिदत्ता जन्मी जेने परिणामे ऋषिओ आश्रम छोडी चाल्या गया. अहीं अक मुद्दो विचारवा जेवो छे. अगाउ ज्यारे विश्वभूति तापसना आश्रममा महिनो रहीने हरिषेणे ऋषभदेवनु मंदिर बंधाव्यु हतु त्यारे विश्वभूति तापसे अने विषहरमंत्र आप्यो हतो जेने आधारे अणे प्रीतिमतीने झेर उतार्यु ने प्रीतिमतीने परण्यो. आ उपरथी अम तो लागे छे के तापस विश्वभूति जैनधर्मना पक्षपाती हशे; पण तो पछी पत्नी सहित हरिषेणे मे मुनि पासे पाछळथी केवी रीते दीक्षा लीधी अने बन्ने जणां अ आश्रममा शी रीते रहयां ? अत्यारनी परंपरा जोतां जैनधर्म अनुसार आवु बनी न शके. वळी हरिषेण कनकरथने मळे छ ते वखते मंदिरमां भगवंतनी पूजा करीने जिनस्तवन उच्चारे छे ने चैत्यवंदन करे छे. पुत्रीने परणावीने वळावतां से ज हरिषेण चिता खडकावी बळी मरे छे से पण जैनधर्मनी विरुद्ध ज छे; कारण, आपघात करनार अनंत भव रझळे छे अने आ भव तेम ज परभव बन्ने भवनु अहित करे छे, अम आ ज कवि पाछळथी (३३ दु.५) कहे छे.. मेक अवो पण प्रश्न थई शके के ऋषिदत्ता जन्मी अने अनी माता मृत्यु पामी ते पछी अना पिता हरिषेणे ज ने उछेरवान शा माटे माथे लीधु १ तास तरीके से जंजाळ अणे शा माटे स्वीकारी ? पोताना पुत्र अजितसेन पासे शिशु ऋषिदत्ताने से मोकली शकयो होत. तापस होवाने बदले अ आश्रममा रहेतो होवा छतां हरिषेण वधारे प्रमाणमा गृहस्थी जेबी मायाममतावाको निरूपायो छे मे चोक्स. अलबत्त सामान्य वाचकने प्रसंगोनी झडपी अने रसिक परंपराना प्रवाह मां तणातां आवो कोई. प्रश्न न सूझे ओ स्वाभाविक छे. अटले समग्रपणे जोतां आ वात कृतिने हानिकारक नथी नीवडती. "ऋषिदत्ता रास"नी भाषाभूमिका : “ ऋषिदत्ता रास "नी अनेक उपलब्ध हरतप्रतोमांथी में जनो उपयोग करी पाठांतरो नेांधी आ कृतिनु संपादन कर्यु छे ते प्रत २१ पत्रनी छे अने भाषानी दृष्टिले, तेम ज अर्थनी दृष्टिों वधार शुद्ध छे. रचनासाल पछीना लगभग बावीसेक वर्षनी ज लखायेली आ प्रत छे अटले "जयवंतसूरि" ना मूळ पाठनी वधु नजीक लई जवामां सरळता करनारी छे. आ प्रत देवनागरी जैन मरोडनी छे अने अमां वर्तमान पद्धतिओ मळे छे ते प्रकारे शब्दो छूटा पाडेला नथी, वाकयखंडो तारव्या नथी, पण सळंग लीटीओ लेखन करवामां आव्यु छे. शब्दने गमे त्यांथी तोडवानी रोत चालु छे. केटलीक वार अनुसंधान माट < आयु के - आयु निशान करवामां आव्युं छे. केटलीक वार शब्दमां कानो पण तोडवामां आव्यो छे. ज्यां छंद के देशी बदलाय छे त्यां छदनु नाम तथा प्रत्येक कडीओ आंक मूकवामां आव्या छे. लिपि अने उच्चार : . "ऋषिदत्ता रास" समर्थ कवि जयवंतसूरिनी रचना छे अने अनु लिपीकरण लहियाओओ अति चीवटथी कर्यु छे. अथी अनी भाषामां मे युगनी शिष्ट वाणीनु प्रतिबिंब सुभगपणे झिलायु छे. आ प्रत जेने 'अ' मेवी संज्ञा आपी छे तेमां व्यंजनोमा आवता अ कार अने ओ कार आधुनिक पद्धति प्रमाणे मात्रामा ज लखायेलां हे, छतां क्वचित् पडिपात्रानो पण उपयोग करायो छे. उदा. त. ते पांचई (ढा. १ क. १) सोहकरी, सेवई (ढा. १ क. २) अनुस्वार अने अनुनासिक वच्चे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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