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________________ ५० कोईपण प्रकारनो भेद दर्शाववामां आव्यो नथी, आ प्रतमां अनुस्वारोनो उपयोग मोटा प्रमाणमां करेलो जोवामां आवे छे. व्यंजनोमां 'ख' उच्चारण थाय छे तेवा लगभग बधा शब्दोमां 'ष' लखायेलो जोवा मळ छे. जेम के ससिमुष (ढा. २ - २ ) सरिषी ( ३-५ ), देषत षेवि (४-९), द्राष, अषोड ( ४.१५). आवां स्थानोमां में तैयार करेली वाचनामां 'ख' ज वापये छ. सामान्य रीते तत्सम शब्दोमां मोट भागे 'श' ने बदले 'स' जोवा मळे छ. उ. त सुभ सुकने (३.१३) सीतल ( ४.६ ) . अनुनासिक व्यंजनो जेवां के ण, न अने मनी पूर्वे अनुस्वार जेवुं बिंदु आ प्रतमां जणाय छे. जेम के कांमी (४.१५) जांणे (४.२१). 'य' जो शब्दारंभे होय तो अनो उच्चार तद्भव शब्दमां 'ज' थाय छे 'ल' ने स्थाने जिह्वामूलीय 'क' उच्चारण धतुं हशे तो पण 'ल' स्वरूपे नांघायल मळे छे. उदा., सुविशाल (४.२५) चोली (४.२९). 'ह' श्रुति - ह व्यंजन तरीके शब्दारंभे तेम ज शब्दना मध्यमां पण छे. परंतु ज्यारे अ शब्दना मध्यमां व्यंजन साथे जोडायेल होय छे त्यारे से लघुप्रयत्नतर (स्वरने महाप्राणित) करतो होय ते रोते आवेलो होवानी शकयता छे. “अहवलं" (डा. ४. ३५) पहिल (४.३९ ) तुहमें ( ५.१ ) ताहरा ( ५.१ ) . लखाणमां नु अने तु, अने त घणी वार सरखा लागे छे, जाणे के अक ज होय अवी भ्रांति थाय. ज्यारे अक्षर के शब्द छेकवाना होय छे त्यारे अक्षर के शब्द उपर || आवी लीटीओ द्वारा निशान कर्यु होय छे, अथवा अ अक्षर के शब्द हरताळथी छेकेल होय छे. केटलेक स्थळे आवा छेकवाना शब्दोतुं मथाळु बांधेलुं नथी होतु, अवे समये अ अक्षर के श त्रानो नथी अम समजी लेवानुं होय छे भाषा भूमिका : " ऋषिदत्ता "नी हस्तप्रतमां प्राप्त थतुं भाषास्वरूप से समयनी उच्चरित भाषानुं प्रतिनिधित्व धरावे छे के नहि अनो निर्णय करवो खूब कठिन छे से समयनी बोलाती अने लखाती भाषामां खूब फेर होवो जोईओ अने हस्तप्रतमां लखाती भाषा से जूना समयनी चालो आवती रूढि - प्रणाली मुजबनी होत्री जोईओ. ट्रंकमां, हस्तप्रतीनां भाषा विभिन्न भूमिकाओमांयी पसार थई आज सुधी ऊतरी आवी छे. भाषानी लाक्षणिकता : मध्यकालीन गुजराती भाषानी लाक्षणिकता 'ऋषिता रास'ना आधारे नांचे प्रमाणे तारवी शकाय : ( १ ) संस्कृत तत्सम शब्दोनो बहोळा प्रमाणमां उपयोग थयेलो जोवामां आवे छे : नृप ( ७.१ ) तुरंगम ( ७.१ ) मुख - कर-चरण ( ७.४ ) जल ( ७.४) नंदनवन (७.५) नाभिकुलोदधि (७.७) चंद (७.७) प्रासाद (७.१०) वल्लभ (७.१५) लज्जा (७.२६) कुकर्म (७.३१) पायस (७.३२) दर्शन ( ७.३८ ) सागर (८.१ ) उत्तर ( ८.३) नृपतनय (८.२ ) प्रकाश ( ८.३) पावक ( ८.३) वगेरे.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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