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(६) राजुळावतातिः :
आ गीतमां नेमनाथ विना राजुल केवी झूरे छे अने अने विरह केव बाळे छे ते कवि वर्णव्युं छे. कवि सलाह आपे छे के हे भविक जनो! तमे विषयमां विलुब्ध न यो विषयने उत्पन्न करनारी आ पंचेन्द्रिय उपर संयमः केळवो: कारण, विषय तो कषाय करावे छे. नाक, कान, आंख, जीभ अने स्पर्श आ सर्वे इन्द्रियो विषयरसने वधारनारी छे तेथी सुख पामवा सेना उपर जीत मेळवो. कविअ आ गीतने पांच जुदां गीतोमां वच्युं छे. प्रथम गीतमां कवि नेमनाथना विरहमां राजलना मुखे बोलावे छे के जे माणस स्नेहथी बंधायेला होय तेने विरह सहेवो मुश्केल छे. बीजा गीतमां चक्षुने दोष दइ कवि कहे छे के "पापी अवां नयनोने धिक्कार हो ! जेने स्वप्नमां पण मल्यां न होय तेने जोईने स्नेह घरे छे अने अना विरहथी झूरी मरे छे." वीजा गीतमां भ्रमर नासिका द्वारा रखनी सुगंध माणी केवी रीते कमलना बंधनमां जकडाय छे ते वर्ण व्यु छे. चोथा गीतमां हाथीनुं दृष्टांत आपीने कहयुं छे के स्पेर्शेन्द्रियथी हाथिणीओ जे विलास रच्यो तेयां हाथी सनडाई गयो, मांट तमे विषयरसने टाळो. पांचमा गीतमां पोपट प्रतीक · लइ कवि कहे के फरुनी आशाओ ते पिंजरां पुरायो आम जाणी विषयरस त्यागो.
आम मोह ज आपणने दुःखी करे छे जेवी रीते नेमनाथना स्नेहमां राजुल दुःखी थाय छे तेवी रीते. माटे इन्द्रियोना सुखनेा त्याग करो अवो कविना उपदेश छे.
( ७ ) " स्थूलभद्र मोहन वेलि" -- प्रथाय ३२५ :
आ कृतिनी हस्तप्रत प्राप्त थई नथी.
(८) सीमंधरना चंद्राउला :
आ २७ कडीनु काव्य छे. आमां पण कविओ हालमां महाविदेहक्षेत्रमां विहरता जैनोना तीर्थ कर सीमंधरस्वामीनी स्तुति करी के.
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"सुणज्ये! वीनतीरे, ओलगाडी रे सौंदेसे मान्यो दूरिथी रे अतिशय सयल अलंकार, सीमंधर जिनरायेो: "
( ९ ) गीतसंग्रह :
आ गीतसंग्रहमां कवि रचेलां ५३ गीतानो संग्रह छे: कविअ सरस्वती - लक्ष्मी पद्मावती वगेरे देबीओना गुणगान गातां गीतो रच्यां छे, तो केटलाक तीर्थ करान वर्णन क छे तदुपरांत प्रख्यात श्रावकोनां चरित्रो उपर पण गीत रच्यां छे. सरस्वती देवीनी महत्ता गातां कवि कहे छे के
“वांणी निर्मल आपती रे, कापती अस्तिणां मूल महीअलि महिम वधारती रे, शारदा थई सानुकूल.
चोथा गीतमां चोवीसमा तीर्थंकर. "महावीरस्वामी" नी स्तुति करो छे : "उघड्या आनंद रहां हाट, तुं दोटई सवि व्ल्यारे उचाट."
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