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________________ ऊचाऊस्यउं मोह विचक्षण कुंण करइ रे. नीठर मेहलीजति कि, परदुख नवि धरइ रे; टलवलतां मृगबालिक, मेहलती गहिबरी .रे, रडी रडी भर्या तलाव कि, ससनेही खरी रे. मोकलावी इम कानन, चाली कांमिनी रे, पीउस्यउं सोहइ जिम, ससि संगमि यामिनी रे; वन वियोगनउ दुख कि, पीऊ तसु छंडवइ रे, खिणि खिणि वारइ चित्ति विनोदई नवनवइं रे. मारगि तरुतणी श्रेणि, आरोपइ मुनिसुता रे, हरिवर्षकथी बीज जे, लाव्यउ तसु पिता रे; सदा फल सरस सवादि कि, वनराजी भजइ रे, जे जोतां मनमांहि कि, आनंद ऊपजइ रे. ढाल १० राग धन्यासी (विदेहीना देहइं रामइंया राम-देशी) दिन केते रथमर्दन नयरइं, सपरिवारि दोइ आव्यां जो, हेमरथराइं परमानंदई उच्छ व विविध कराव्या जी. तलीआ तोरण अतिहि मनोहर, मंडप मोटा सोहइ जी, मंचतणी तिहां रचना रूडी, जन बइठा मन मोहइ जी. विविध वर्ण लहलहइ पताका, मंडप ऊपरि सार जी, नव नव भातितणा चंद्रूआ, बांधी परीअचि फार जी. छडा छावडा कुंकमरोला, फूल फगर सुगंध जी, कृष्णागुरूना धूप मनोहर, गायन गाइ प्रबंध जी. नाचइ पात्र ते ठामोठांमइं, वाजित्र बाजइ कोडि जी, बिरूदावली बंदीजन बोलइ, गाइ सुहासणि कोडि जी ३ ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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