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गुखि चढीनई कोतुक जोइ, नारी केरा वृदाजी, कुमर सोहइ ऋषि दत्ता साथ इं, जिम रोहिणिस्यउं चंद जी. ६ मोती थाल भरी वधावइ, इहि वसू दीइ आसीस जी, माय ताय परिजन सहु हरिख्या, पुहती सयल जगीस जी. ७ सुत गुणवंत विशारद जांणी, जांणी समरथ धीर जी, युवराज पदवी प्रेमई आपई, हेमरथ नरवर वीर जी. ८ कनकरथ ऋषिदत्ता बेहु, विविध परई सुख विलसइ जी प्रेम अभंग बेहु परि सारिखु, दिन दिन उदय विकसइ जी. ६
ढाल ११
राग-पंचम हिवइ जे हुइ वात, सुणउ ते सहु विख्यात; अदेखी स्त्रीनी जाति, कूड करती नांणइ भांति. वेढाली होइ खोटी, यवरोटी कागई बोटी; जूठी रूढी धीठी, मायागारी मुहड इ मीठी. लोभिणी लंपटि लूंटी, निसने ही नीठ र कुटी; अवगुण केरी खांणि, नारी अहवी निरवांणि. काबेरीनयरीनाह, वात निसुणी पाम्यउ दाह; रूठी ऋखिमणि मनि चितइ, उपाय विविध ते चिंतइ. कांमणगारी हुइ बेटी, तापस केरी कोइ चेटी; तेणीइं मोरु नाह, भोलाव्य उ अति हि उमाह. पोष्यउ आपसवाद, ऊतारुं जउ तसु नाद; तउ हुँ साची नारी, चितइ ऋखि मणि मदि धारी. कांमणगारी रंडा, योगिणी कूडकरंडा; सीकोतरि नांमई, प्रसिघी ठामोठामइं.
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