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________________ परिशिष्ट-३ "ऋषिदत्ता रास"मांथी सूक्तिओ अने कहेवतो अणदीठानउं दुख नहीं, दीठउ विघटइ साल. (४. ३७) वेध तणी छई वात ज घणी, प्रांणीनई मेलइ रेवणी. (६.९) प्रांणी पीडाइ प्रेमनइ वसइ. (६.१०) प्रेम कीधउ तिहां बांध्यउ जीव. (६.१२) । मनइ मन ते एक कहायइ. (६.१४) एणई संसारई एतलउ सार, प्रेम तणउ मोटो आधार. (६.१५) वायुं न रहइ व्यसनी. (६.२१) प्रा. विण वरसई मेह भूरि. (७.१७) स्युं कहीइ सज्जननई. देव, ते उपगार करइ स्वयमेव. (७.१७) सहजई करइ परनई उपगार, स्वारथ वंछइ नहीं लगार, तेणइ सज्जनि ए सोभइ मही, रवि उगइ तस पुण्यई सही. (७.२९) वारिहारि घटिका संगि, झल्लरि सहइ प्रहारनी व्यथा. (७.३१) डाहई कुसंगति तर्जवउ. (७.३३) न रहइ ढांकयउ नेह. (८.१) दूधमांहि साकर (८.२) दूध स्यउं साकर भेली. (२९.४) गुणवंत नरनी संगतई, गुण तणउ होति प्रकाश. (८.२) रोर मनोरथ.. रही मनमाहि. (८.४) सरजित अन्यथा नवि हवई ए. (८.५) काल कुशलनइं जे छलई ए. (८.५) नहीं निमिषनउ वीसास जीवित. (८.५) खांड नई ठांमई साकर. (९.५) कल्पवेलि लही अलवि तु कारेली खप नहीं रे. (९.५) ते विरला जगमांहि कि प्रीतई जे पलइ रे. (९.६) खरा दोहिला प्रीतिका पालना रे. (९.७) माणस तेह प्रमाणि, जे प्रीतई अकमना रे. (९.८) सूली रूडी सउकिथी. (९.९) जेहवी आभां छांह कि, पाणी लीहडी रे, झबकई दाखवई छेह, विदेशी प्रीतडी रे. (९.१६) उंचा स्यउं मोह, विचक्षण कुंण करई रे, नीठर मेहलि जति कि, परदुख नवि धरई रे. (९.१७) अदेखी स्त्रीनी जाति, कूड करती नाणई भ्रांति. (११.१) अवगुण केरी खाणि, नारी एहवी निरवांणि. (११.३) जेणई जगमांहि हासुं हुवई, किम करइ उत्तम तेह ? (१३ २) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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