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बेटक ऊपनउ अति आनंद पालव्य उ प्रीतिनउ कंद, तिहां रह्य केता दीह, नृपतनय अकल अबीह. अति चतुर कुमरनइ संगि, सा मुग्धि पिण हुई रंगि, वर कुशमनइ संबंधि, अति तैल हुइ सुगंधि, सुगंधि हेावति नीर निर्मल, पामंति पाडल वास, गुणवंत नरनी संगतइं, गुणतणउ हाति काश.
___चालि
प्रकाश प्रेमनउ मुनि लही बेहुनउ , आनंद मनमांहिं अति लहइ अ, लाडि गहिलो अनइं, मन किम दुख देइ , तापस जमाईनई इम कहइ अ, देई भलामणि, करी मोकलामणि, समर ण नवकार तणउं करइ अ, पुत्रीनउ विरह अ, न मई सह्याउ जाइ मे, इम कही पावक अणुसरइ अ.
त्रुटक
अणु सरइ पावक जांम, ऋषि मरण पांम्यउ तांम, टलवल इ बाला दीन, जिम नीर विरहई मीन, हा तात ! करुणागार ! सौजन्यनउ भंडार ! केही केही हित रीति, ताहरी समरूं चींति चीति समरू ताहरा गुण, दूरि था देखो करी, प्रणय कोमल नयन वयणे, लेड तउ अति हित धरी.
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