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________________ ३४ त्यारपछी कनकरथ ऋषिदत्ता कोनी पुत्री छे अवो वृत्तांत पूछे छे ने हरिषेण सघळी हकीकत जणावे छे. आ योग्य नथी. बीजी कथाओमां कनकरथ प्रथम सघळी हकीकत जाणे छे पछी ज ऋषिदत्ताने परणे छे. राजकुंवर होवाथी राजकुंवरीने ज परणी शके. राज्यना कायदाकानून मुजब, तेथी पहेलां परणी जाय ने पछी मे कोई सामान्य मातापितानी पुत्री होय तो मुश्केली ऊभी थाय. पाणी पीने पछी घर पूछवानो शो अर्थ ? ऋषिदत्ता पिताना आश्रममां आवे छे त्यां पोते स्त्री होवाथी अकली ना रही शके. कोईपण पुरुषनी दानत बगडे माटे पिता बतावेलो औषधि जांघ चीरीने तेमां मूकी दे छे आ योग्य नथी. बीजी कथाओमां कानमां घाले छे अवु दर्शाव्युछे, ज्यारे आख्यानकमणिकोशमां अवं दर्शाव्यु छ के डाबो साथळ चीरीने अणे तेमां औषधि मूकी, सामान्यतः पुरुष साथळमां मूके तो ते समजी शकाय. सहजसुंदरे आपेला कथानक प्रमाणे कनकस्थ भद्रयशो गुरुने पूछे छे, “मारी पत्नी ऋषिदत्तासे पूर्वभवमा कयां पाप कर्या हतां जेथी आ भवे अना कर्मे कलंक चांटयु?" जयवंतसूरिकृत व.थामां ऋषिदत्ता पोते ज गुरुने पूछे छे, “ मने पूर्वभवनां कयां कर्म नड्यां, जेथी आ भवे आQ कलंक चड्यु?" अज्ञातकविकृत ऋषिदत्ताकथामां आवती वे दृष्टांतकथाओ : हरिषेण राजा अक बार अजाण्या घोडा उपर सवार थई नीकळी पडयो. फरतां फरतां जंगलमा आवी चड्यो. त्यां घोडाने अणे छोडी दीधो. पछी खूब फर्या अने दिशाओ भूली गयोः त्यां अक तापसनो आश्रम जोयो. ओ आश्रममा आवीने वेठो. आश्रममां कच्छ-महाकच्छवंशमां थयेला विश्वभूति तापस अनेक शिष्योथी वीटळाईने बेटेला हता. हरिषेण राजा गुरुने नम्यो अने बोल्यो, “ हे महानुभाव ! तमारा दर्शनथी बधुज सार थई गयु. जे मृगोनी मैत्री राखनार छ, दुःखी प्राणीओने सांत्वना आपनार छे तेने कोण न वांदे ?” आम कही गुरुने पगे लाग्यो. तापस विचारे छे के आकृतिथी तो आ राजा लागे छे. आशीर्वाद आप्यो, “ज्यां सुधी आ स्वैरंगंगानो प्रवाह चाले छे, ज्यां सुधी सूर्य आकाशमां चाले छे, ज्यां सुधी मेरु पर्वत शोभे छे त्यां सुधी तु स्वजन, पुत्र, पोत्रथी वीटळायेलो रहे. ज्यां सुधी काचबानी पीठ पर भुजगपति छे त्यां सुधी तु राज्य कर." अक वार राजाओ विद्वद्गोष्ठिमा पूछथु, " पैसा कमावामां दुःख छे, कमाया पछी साचववामां दुःख छे. पैसाने वापरवो दुःखकर छे. अक जन्मने माटे पसार्नु पाप ऊभु थाय छे. हु पैसो केवी रीते वापर जेथी मारो जन्म सफळ थाय ? मुनि) कहयु, “जे माणसो न्यायधी पैसा कमाई मंदिर बंधावे तेनु कल्याण थाय छे-धनधेष्ठिनी जेन." धनश्रेष्ठीनी आ दृष्टांतकथा नीचे प्रमाणे छे : “ धनद नामनो शेठ नाम प्रमाणे गुणवान हतो. अने धनश्री नामे पत्नी अने धर्म, अर्थ काम अने मोक्ष जेवा चार पुत्रो धनदत्त, धनपाठ, धनसार अने धननायक नामे हता. राजाओ भेने शेठनी पदवी आपी. सारा व्रतवाळा शेठे गुरुनी देशना सांभळी. देशना सांभळी शेठे ऋषभदेव भगवाननु मोटु मंदिर बंधाव्यु. आखा गामने से शुभ प्रसंगे नेांतर्यु: Jain Education International For Private & Personal Úse Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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