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भूतकाळ-भूतकृदंत पण क्रियापदन काम करत जणाय छ :
पहेलो पुरुष : सुण्यु, पांम्यउ. बीजो पुरुष : दीध, कीध, थयउ, कीघउ, चाल्यो, आव्यु, दीठी, थई, गई,
__ आव्या, अवतरीआ, उल्लंघ्यां, उतार्या', भराणी, मूर्छागी,
बीहनी, भोलाव्यो, कोपव्यू. .. भविष्यकाळ-पहेलो पुरुष : जस्य, लेस्यउ.
बीजो पुरुष : करिसि, धरिसि, करस्यउ. (बधां “मा" जोडे).
त्रीजो पुरूष : होस्यइ, जास्यइ, थास्यइ, करस्यइ. आज्ञार्थ : खोहि, सुणि, छे, राखि, कहिजे, बोलिन रे, उतारु, करु, सुणयो, करयो, फलयो
आपेयो, जायवउ.
कर्मणि, प्रेरक अने विध्यर्थ रूपो. पण क्यारेक मळे छे. संयुक्त क्रियापदो घणां छे : , मेहल्या जोई, जोई आव्या, गयउ परणी, रही उवेखी, नाठी आवी, रोवा लागी, वगेरे,
छ', छई, अछई अने नथी (७.१५) पण नेधिपात्र बने छे.
"भू" धातुनां विकसित रूपो हउ, हो, होयो, हुइ, हवी, हती, हुंती मळे छे. कृदन्तो : वर्तमान कृ. : जोतउ, देखत, सूतां, धरतु, हसंती, देती.
भुत कृ. : वंछित, चिंतित, घार्यउ, वार्यउ, लिख्यु. हेत्वर्थ कृ. : वखांणवा, परणेवा, पामेवा, मरवा, सहिवा, जिपिवा. संबंधक भू. कृ. : आरोही, पठावी, पामी, कहेवि (१५.८), करीय, कहावी, करीनई,
देखीनई, जोइन' अव्ययो : जु-जउ, तु-तउ, जिहां, तिहां, किहां, जांम, ताम, कइ, जिम, तिम, आगलि,
दूरि, अनइ, मांहि, उपरि, सही, नवि, हवई, प्रति, भणी, स्य, पणि, वगेरे.
प्रास मेळववा माटे कवि रूपोनी बाबतमां छूट लेता क्यारेक देखाय छे. नीचेना वाक्यप्रयोगो नेधिपात्र छ :
राइ हुँ मोकल्यो तुम्ह भणी. हुं वेचाती लीधी. तु देखीनई मोही मुंधि, मई तुं परणी. राजाई रति पामी खरी. तुझ जीवितनइ हुँ कोप्यो. ते सविइ हुँ सेवी. हुँ पूरव करमनइ नडी केहई! जिनपूजानई म हउ व्याघात. वगेरे.
आम भाषा अने व्याकरणनी दृष्टिले पण भा रास अभ्यास माटे महत्त्वनी रचना बनी रहे छे.
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