SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५ जनमल गई मई कोइ न दूहव्यउं, कांइ न कर्या कुकर्म रे; तु दैवई दोहिली वेला, दोधी केहइ मर्मइं रे. ८ मत. नीसासइं सोषी वनराजी, रडि रडि भयाँ तलाव रे; खग मृग नाग तसु करुण विलापई, पांम्या दुख संताव रे. ६ मत. हैअडुं दुख भराई आव्यउं, आंसू अंखडी धार रे; कोइ न रडतां वारइ वनमां, कोइ न ठारणहार रे. १० मत. विलपि विलपि आपई रही सुंदरि, देती करमनइं दोस रे. पूरव करम शुभासुभ दाता, अवरस्य उं केहउ दोस रे; ११ मत. ढाल १६ राग : वइ राडी (पांडव पंच प्रगट हवा-अथवा मन मधुकर मोहो रह्य उं- देशो.) सती सिरोमणि संचरइ, ऋषि दत्ता सुविचारजी; तुं धीर था रे प्राणीया, म धरीसि दुख लिगार जी, करम साथ इं रे कुंणइं नवि चलइ, करमइं नड्या रे अनेक जी; पंडित अम विचारतां, आंणइ हैअडइं विवेक जी. १ सती. श्री रसहेसर वरसतई, पांम्या नहीं रे आहार जी; पूरव करम उदय थकी, परीसह सह्या रे अपार जी. २ सती. घोरोपसर्ग सह्या घणा, चरणि रंधाई खीर जी; श्रवणि बि शिलाका करमथी, कालचक्र सहइ वीरजी. ३ सती. रांमई स्यां स्यां दुख सह्या, पूरव करम प्रसादई जी; है कांपइ अवरनां, सुणतां तेहनी वात जी. ४ सती. वासुदेव छूटा नहीं, करमई जउ बलवंत जी; स्वजन विछोह तेणइं लह्या, जराकुमार सिरि अंत जी. ५ सती. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy