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द्यूतइं हारी कांमिनी , वनि रल्या पांडव पंच जी; मच्छंद्र राय सेवा करी, मोट उ करम प्रपंच जी. ६ सतो. नल नरपति अति दुखीउ, वनमांहि छंडी नारि जी; अन्नपाक परमंदिरइ, करइ ते करम प्रचार जी. ७ सती. हरिचंद सत्यवादी सदा, डुबघरि आणइ नीर जी; सुत तनु वनिता वेचीयां, करमई इम रुल्या धीर जी. ८ सती ब्रह्म सिर करमि छेदावीउं, कीध कपाली ईश जी; ग्रह भमवओ सशि सूरनइं, रावण गमीआं सीस जी. ६ सती. इंद नरिंद न मेहलीया, करमई जेह महंत जी; निज मन वालइ इम कही, ऋषिदत्ता गुणवंत जी. १० सती.
ढाल २०
राग : रामगिरी (सूरिज तउ सबलउ तपइ-ओ देशी.)
१ ऋषि. द्रुपद.
२. ऋषि.
चित वालइ इम आपण उं, पणि वाल्य उं न जाइ; परवत फाट इ इणइं दुख इं, नीला झाड सूकाइ. ऋषि दत्ता पंथि सांचरइ, अति आकुल थाइ. धीकइ अगनि अंगीठडी, वेलू जंघसमांणी; परसेवउ खलहल वहइ, जांणे नीझर वाणी. रुधिरधार चरणे वहइ, खूचइ गोखरू कांटा; कांकरा पीडइ आकरा, भाग इ डाभनां झांटा. अधर फाटइ सूकइ गल उं, जाइ सासि भरांणी; छांह मात्र पांमइ नही, किहांइ नवि लहइ पांणी. रडइ पडइ पंथि आखडइ, आंखइ अंधारां आवइ; डुंगरि दव जलइ दूरिथी, तेहनी झाल संतावइ.
३. ऋषि.
४. ऋषि.
५. ऋषि.
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