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जे विस्तृत रासाओ जैनमुनिओ द्वारा रचाया तेमां जन आगमो सूत्रो अने अंगोनां आवतां पौराणिक पात्रोने अनुलक्षीने कथानको रचेलां मळे छे. घणा रासोमा दीपक शङ्गाररसनां वर्णनो मळे छे, पण तेनी साथे कविने उपदेशवानो होय छे विषयोपभोगतो त्याग ओटले काव्यो अंत हमेशां शील अने सात्त्विकताना विजयां आवे छे रासनी रचनानो उनो बोध होय छे अने अमां संयमश्रीने बरवानी वात आवती होय छे.
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रासाओनो मुख्य हेतु धर्मोपदेश आपवानो रोचक कथानक द्वारा जो थे कार्य थई शके तो जनता उपर से उपदेशनी सचोट असर थाय बळी घणा रासाओ तीर्थकरो, राजवंशी जैन साधुओ के जैन श्रेष्ठीओना जीवनचरित्रने विषय बनावे छे. कोईक रास तीर्थनु साहात्म्य पण वर्णवतो होय छे. आय जैन मुनिओओ रचेला रासमां जैनधर्मनुं माहात्म्य बताववु अ ज प्रधान हेतु छे.
वर्णनो, प्रसंगो अने धर्मोपदेश उपरांत साहित्यनुं तत्त्व पण घणा रासाओमां सळे छे. संस्कृतमां प्रवीण सेवा घणा साधुओओ रचेल रासाओमां शब्दालंकार ने अर्थालंकार बन्ने मोटा प्रमाणम मळे छे. आ रासाओमां कर्मनो सिद्धांत टसावना सारे आगळपाळना भवनी कथा कवि आपे छे. कविभां पांडित्य होय पण कवित्वनी ऊणप होय त्यां अनी कृति रोचक न बने ने केवळ धर्म कथा ज बनी रहे अ पण अट ज साधुं छे. पाळधी रचायेला केटलाक रासाओभां परिस्थितिले आवो वळांक लीधो होवानुं जणाय छे.
सामाजिक दृष्टि पण रासाओ उपयोगी बने छे, केस के तेमां व्यक्तिगत, अतिहासिक, सामाजिक, भौगोलिक के राजकारण संबंधी उपयोगी माहिती पण भरवामां आवी होय छे. आ हिसाबे जैन रासा - साहित्यनु अंतिहासिक दृष्टिले पण सहत्त्व छे.*
श्री जयवंतसूरिओ रचेल " ऋषिदत्ता रास "नु कथावस्तु ( ढालानुक्रमे ) : पंच परमेष्ठीने नमस्कार. सरस्वती ऋषिदत्ताना आख्यानदी रचना साठे निर्मळ वाणी आपो. रसिकजनोना आग्रहे ऋषिता चरित्र आलेखवानो आ उस कीधा छे. (१)
रथमर्दनपुर नामे अक सुंदर शहेर हतु त्यां हेमस्थ नामे राजनीतिमां निपुण राजा राज्य करतो हतो. तेने सुयशा नापनी रूपवती पटराणी हती. तेनो दीकरो कनकरथ कांतियां कामदेव सरखो हतो. (२)
कावेरी नामनी अक रमणीय नगरीनां सुंदरपाणि नामे बळवान राजा राज्य करतो हतो. तेनी पटराणी वसुधाने रुखमणी नामनी स्वरूपवती दीकरी हती. ते उम्मरलायक थाने तेने लायक वर शोधवानी चिंता थई. कतकरथ ज वर तरीके सर्वोत्तर लगता हेमरथ राजा पात
कृतिनुं संपादन अहीं प्रधान होई तेना प्रकार अंगे आटली संक्षिप्त चर्चा उचित गणी छे. डॉ. भारती वैद्यकृत “ मध्यकालीन रास साहित्य ". डॉ. संजुलाल मजमुदार गुजराती साहित्यनां स्वरूप " डा. चंद्रकान्त महेतानु " मध्यकाळा साहित्यप्रका" श्री के. का. शास्त्रीनुं " गुजराती साहित्यनुं रेखादर्शन " तथा डी. हरिवल्म्स नादागीना देखी रासना स्वरूप अने विकासनी विगते चर्चाविचारणा नही रहे छे.
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