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________________ मळे तो पाठांतर लेवानी जरूर न पडे, पण लेखकनी पछी 10-1५ के ५० वर्ष लखायेली प्रतोमां लहियानी योग्यता सभजीने तेने महत्त्व आप पडे. सांय योग्यता न जणाय तो पाठो माटे तत्कालीन भाषाप्रवाहने ध्यानमा राखी बीजी प्रतो उपरथी मूळ पाठने शुद्ध करवो पडे. उपलब्ध प्रतोमांथी समयनी, जोडणीनी के भाषानी प्राचीनताना धोरणे प्राचीनतम टरावी शकाय तेवी तेज ते सुवाच्य हाय अवी प्रतने मुख्य प्रत गणी छे अने संपादित ग्रंथपाट तेने आधारे तैयार करवामां आव्या छे. आ प्रत ला.द. विद्यामंदरना ह.लि. भंडारनी छे. आना करता जूनी प्रत गोडीजी उपाश्रयना ह.लि. भंडारमांनी छे, परंतु ते प्रत पाणीथी भींजायेली छे अने तेमां क्यांक अक्षरो भुंसाई पण गया छे. प्राचीन गुजराती कृतिओना संपादनमा पाठांतरोनी नेांध ओक खूब ज गूंचवे अवा प्रश्न छे. अनेक कारणे प्रतोमा जोडणी बाबत संपूर्ण अराजकता प्रवर्तती जोवामां आवे छे. घणी वार अर्बु बने छे के लहियो जो विद्वान न होय अने मळ पाठ बराबर ऊकल्यो न होय तो पोतानी समज प्रमाणे अणे फेरफार करीने प्रत उतारी होय छे अटले लहियाओनी मर्यादाओ स्वीकारी लईने मूळ पाठने शुद्ध करवानो प्रयत्न को छे. बीजी छ प्रतोनां पाठांतरो कृति पूरी थतां पाछळ ओक साथे ज आप्यां छे. संदर्भ माटे आवश्यक होय ते तेम ज बीजी प्रतामा सळता वधाराना पाठने पण त्यां नेांध्या छे. मुख्य प्रतनी अक के वधारे व.डीओ बीजी काई पण प्रतमा न मळती होय तो पण ते कडी संपादित ग्रंथपाठमां औचित्यपुरःसर ते ते रथळे मूकी छे... कवि जयवंतसूरिनुं जीवन ऋषिदत्ता रासना कर्ता कवि जयवंतसूरि आचार्य विनयमनसूरि स्थापित वृद्धतपगच्छनी पर. परामां थई गया जेवी माहिती तपागच्छ पट्टावलीमांथी मळे छे.* ___लगभग चौदमा सैकानी शरूआतमां वृद्धपौषालिक तपागच्छ अने लघुपोषालिक तपागच्छ अम बे गच्छो विचारभेदना कारणे अस्तित्वमां आव्या हता. तेमांथी वृद्धपौषालिक तपागच्छनी स्थापना संवत १३०० थी १३२५ना गाळामां थई हती. कवि जयवंतसूरिना जीवन उपर प्रकाश पाडे तेकी कोई सामग्री हजी सुधी उपलब्ध थई नथी. संसारीपणाना त्याग करी दीक्षा लई लेनार जैन साधुओ पोताना पूर्वजीवन उपर भाग्ये ज प्रकाश पाडे छे-अमना दीक्षित जीवन विषे पण बहु आछी माहिती मळी शकती होय छे. कवि जसवंतसूरिओ पोताना गीतसंग्रहमां पाताने माटे नीचे मुजब लब्यूछे अने तेने आधारे आपणे कही शकीए के तेओ बाळब्रह्मचारी हता: " नेमिनाथ जयंती राजलि पुहती गढगिरनारी रे, जयवंतसूरि सामी तिहां मिलीट, आबाल ब्रह्मचारी रे." * : श्री तपागच्छ पट्टावली, भाग १ले '-कर्ता-उपाध्याय श्री धर्मसागरजो, संपादक-पन्यास श्री कल्याणविजयजी महाराज, प्रकाशक-श्री विजयनीतिसूरिश्वरजी जन लाइब्रेरी, अमदाबाद, इ.स. १९४०, पुष्ट ५-६. 'शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबंध'नी प्रस्तावना-वतश्री जिनविजयजी, आत्मानन्द प्रकाश, माघमासनो अंक, पृष्ठ १५६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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