________________
शिल्पोआना निर्माण पर पूरी देखरेख राखी हती. शत्रुजय तीर्थोद्धास्की प्रशस्ति तेमणे. संस्कृतमा रची छे. तेमना गुरुभाई जयतवसूरिनु अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि हतुं. अमणे गुरुपरंपरानो उल्लेख नीचे मुजब शृङ्गारमंजरीमां को छे :
" श्री तपगछ उद्योतकर, श्रीविजयधर्मसूरिंद जिम सुरपति सुरबन्दमां, जिन ग्रहगणमां चंद श्री विजयरत्न सूरिंद गुरु, पट्ट महोदय भाण श्री धर्मरत्न सूरीश्वर, केतू करु वखाण श्री विद्यामंडन सूरीश्वर, श्री विनय मंडन स्वज्झाय श्री सौभाग्यरत्न सूरीश्वर, विजयमान गुणधार विजयमान कुलपंडनह, श्री विवेकम उन उवझाय श्री सौभाग्यमंडन पंडितह, चतुर सौभागी सार. श्री विनय उन मुणींद, लघु सीस भूमिप्रसिद्ध,
जयवंतपंडित अभिनवी, शृङ्गारमंजरी कीद्व." उपरना अवतरणने आधारे गुरुपरंपरानु वृक्ष नीचे मुजब थाय :
विजयधर्मसूरि
विजयरत्नसूरि
धर्मरत्नसूरि
है
विद्यामंडनसूरि .
विनयमंडन उपाध्याय
विक्कधीरगणि
जयवंतपंडित
(1) जयमंडन (२) विवेकमंडन (३) रत्नसागर (४) सौभाग्यरत्नसूरि (५) सौभाग्यमंडन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org