________________
कवि जयवंतसूरिनी कृतिओ
“षिदक्ता रास" उपरांत नानी मोटी थईने जयवंतसूरिनी नव-नस कृतिओ उपलब्ध छे, जमांधी बे-अक जैनगृहस्थोना जीवनप्रसंगने लाती छे, तो ये-ओक जैन संतो-साधुपुरुषो विषे छे. तदुपरांत बे-त्रण कृतिओ स्तबन अने सज्झाय रूपे छे, जेनां जैनतीर्थ करनु गुणदर्शन करेलुछे,
आ सर्व कृतिओझा "ऋषिदना" म ज "शद्वारमजी, बन्ने कृतिओ सारी रीते मोटी तेम ज कविनी कवित्वशक्तिने छती करती, तेमनी विद्वत्ताने नवाजती मुंदर कृतिओ छे. कृतिओनां नाम नीचे प्रमाणे छ :
(१) शुद्भारपञ्जरी (शीलवती चरित्र) स. १६१४. (२) स्थूलभदकोशा प्रेमविलास फाग-1६१४ आसपास २९ कडी (३) ऋषिदत्ता रास-स. १६४३ (४) नेम राजुल बारमास वेलप्रबंध (५) सीधर स्तवन (६) राजुलगीतानि (७) स्थूलभद्र मोहनवेलि-ग्रंथान ३२५ (८) सीधरना चंद्राउला-२७ कडी (९) गीतसंग्रह (10) लोचन-काजल संवाद-1८ कडी (११) नेमनाथ स्तवन.
कृतिपरिचय (१) शृंगारमंजरी :
जयवंतसूरिओ “ शृङ्गारमन्जरी(अपर नाम "शीलवतीचरित्र )नी रचना स. १६१४मां अटले के अमना यौवनकाळ दरम्यान करेली छे. लगभग साडाबारसा लोकमां रचायेली आ कृतिनां कवि अक सती स्त्रीन जीवनचरित्र सचोट शब्दोमां आलेखवानो प्रयास को छे. शील अ स्वोनु सौथी वधारे मूल्यवान रत्न छे अने अने कोई पण संजोगोमा साचवी राखत्रु ओ स्त्रीना जीवननु कर्तव्य थई पडे छे अ दविवाने कविना उद्देश छे. कविले नायिका शीलवतीना शृंगारनु वर्णन तेज ते समयनु जीवनदर्शन, राजकीय स्थिति, लोकोनी धर्मभाबना बगेरेनु पण वर्णन कर्यु छे.
" संवत सोल चौदोतरइ, आसो सुदि गुरु बीज
.. कवि कीधी शृंगारमंजरी, जयवंत पंडित हेज." (२) स्थूलिभद्रकोशा प्रेमविलास फाग :
प्रस्तुत "स्थूलिभद्र-कोशा प्रेमविलास फाग" कविओ सं. 1६१४नी आसपास स्च्या छे. आ ४५ कडीनी अमनी संक्षिप्त पण रसपूर्ण कृति छे. आ काव्यमां कवि जैन समाजमां खूब ज प्रसिद्धि पामेला श्रावक स्थूलिभद्र अने वेश्याकोशाना जीवननु वर्णन कर्यु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org