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________________ २७ दूहा ६ कोमल कंता वचन इम, करूणा पायउ कंत; कहइ सुंदरि निर्दोष तुं, मुझ मनि कोइ न भंति. पणि अहवउं देखी करी, मुझ मनि अचरिज होइ, इम कही सइ हथि राय सुत, वनितानुं मुख धोइ. उत्तरीअ आगलि करी, मुख लू ही सप्रेमि, टाढे मीठे बोलडे, मन ठारइ वली तेम. जांणइ अवटाइ रखे, ओ मुगधा निज त्रित्ति; माया लुबध उ कंत ते, अहवउं करइ नित नित. अवगुण सघला छावरइ, जे जसु वल्लभ हुंति; सरसव जेता दोष नइं, दोषी मेरु करंति. दिन केता इणि परि गया, रथ मर्दनपुरमांहि, व्यापी मरकी अति धणी; जनमन ऊठइ दाह. ढाल १४ राग वइराडी (त्रणतिणां तिहां पूला धरीआ-ओ देशी) जनतणां तिहां सोर ऊछ लीआ, सोक संतापइं ग्रहीआ; हेमरथ राजा वात सुणी ते, क्रोधारुण थई रहीया जी. राइं तलार वेगई बोलाव्यउ, धूजतउ कांपतु आव्यउ जी; रे रे तुं सुख-लुबधु पापी, राजा रोसई वाह्य, जी, राजलोकनी चिंता न करइ; मई तां बहु दिन सांस्युं जो; हिवइ तुं मनि अहवउं जाणे, खंडोखंड करि नांख उ जी. ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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