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________________ जउ विरह ताहरइ प्राण न गया, तउ खरु कठिन सुभाव; अथ देव मुझ जीवत दोय उ, सहिवा रे विरह-संताव. कनकरथि विलापि परबत, खंडइ खंड ते थाइ; नींझरण जिम नयनां वहइ, ते केलव्यां न जाइ.. परवार सवि माता पिता, प्रीछ वइ परि परि जांणि ; नवि चित्त दाझ इ शोकनइं, चतुरिमा अह प्रमाण. कल्याण कोडि लहइ सही, नर जीवता सुणि स्वामि ; इम धीर नर द्यइ धीरणा, करइ दुखनउ विश्रांम. ढाल २४ राग : आसाउरो. (शिवना मंगल वरती-ओ देशी.) हवइ कपटपेटो योगिनी, करी दुष्ट अहवउं काज ; जई सुणावइ रुकमणी, जाणइ दीउ मइं राज. पापिणी रुखि मिणी ते सुणी, उनमत नाचइ भूरि; जिम दाय जीतउ दूतकारइं, विजय पांम्यउ सूर., रुखिमणी तात जे वात जांणी, हेमरथ नर नृप पासइं; अक दूत अवसर जाण समरथ, मोकलउं उहलासि.. ते दूत कर जोडी कहइ, सुणउ वीनती माहाराज ; परणवा तुम्ह सुत आवतउ, पाछ उ वल्यउ कुंण काज? अम्ह स्वामि जोई वाट डी, मया करु मनि देव ; श्री कनकरथ मोकलउ, वीवाह कारणि हेव. . ते वात हेमरथराइं जि सुणी, संबंध जांणी सार; पुत्रनइं परिवार मेली, वीनवइ वारोवारि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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