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कनकरथ गुरुवांणि सुणीनइं, स्वारथ साधन काजई, सिंह रथ सिंह समान पराक्रम, सुत थापइ निजराजइ. संयम सूधउं आदरइ हो, ऋषिदत्तानई राय; दुस्तप तपइ राय सुभमनइं हो, सेक्इ सहि मुरु पाय.
त्रूटक सेवइ सहिगुरु पाय अमाई, चरण करण सावधान, सुभ अणगार गुणे दीपंता, वरजंता दुरध्यांन; ऋमि क्रमि विचरंता भद्दिलपुरि, पुहता श्रीगुरुसाथ, जिणि पुरि श्री शीतलजिन जनमइं, कीधउं अतिहि सनाथ. परजाली ध्यान पावकइ हो, तिहां त्रिणि कर्म निकाय ; लही केवल मुगतइं गया हो, ऋषिदत्ता नइ राय.
चूटक ऋषिदत्ता नइं राय कनकरथ, मुगति बेहु जणि साधी, सकल कलंक थकी मूकाणी, कीरति निर्मल वाधी; अहवा उत्तम सुचरित सुणतां, प्रांणी हुइ पवित्र, सुभ मनि धरम सेवंता लहीइ, सवि सुख अत्र अमुत्र. वडतपागच्छ सोहाकरु हो, श्री विनयमंडन गुरुराय ; रत्नत्रय आराधक हो, जे जगि धरम सहाय.
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बेटक जे जगि धरम सहाय गुणाकर, सुविहितनइं धुरि कीध, तासु सीस गुणसोभाग सुनामइं, जयवंतसूरि प्रसिद्ध ; तेणइं रसिकजनाग्रह जांणी, विरच्यउ सती चरित्र, उत्तम जन गुण सुणतां भणतां, होवइ जनम पवित्र. संवत सोल सोहाकरु हो, त्रिहितालउ उदार; मागसिर शुदि चौदसि दिन हो, दीपंतउ रविवार,
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