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________________ परिशिष्ट रत्नजडित सिरि बोर, कहिडिई कनकमई दोर; हाथे मुंद्रडी ए, हीरे ...जडी ए. हवई कुंयरि सिंगार, उरि नव नव परि हार; मस्तकि राखडी ए, आंजी आंखडी ए. श्रवणे झालि झलाल, कंचूकि सिणि विशाल; गलई निगोदरु ए, विचि विचि मोरु ए. रिमिझिमि नेउर पाय, जाणे हंस चालतु जाई, कंकण चूडीने बांहिं रुडी ए. . सोहई तिलक ललाट, उढिउ सूहवघाट; कटि मेखल घरी ए, तिह घमकइ घूघरीए. बिहूं तंबोलह रंग, जाणे आदन दाडिम भंग; एम सिंगारीया ए, कुंजर चाडीया ए. परिवरीउ परिवारि, आवई नगर मझारि; ढलई चमर सिरि छत्र, नाचई बहु परि पात्र. मागत दीजई दांन, बीजा फोफल पान; नारी मंगल गावई, मोती लेई वधावई. बहिनर लूण उतारई, कुंकम तिलक वधारइं; सरुआ वाजिंत्र वाजई, जे वर आगलि छाजई. चंदन भरीय कचोली, छांटई भंभर भोली; पहिरणि नवरंग चोली, तेवडातेवड टोली. साथिं सहसकुमार, सिणगार्या तोणी वार; याचक करई कईवार, अवसर विनोद अपार. हयरथ आवई जाई, साम्हा गयवर थाई; हसमिसि लोक उजाई, हीयडई हरखिं न माई. भोजन अन्न अवारी, कीजई घर घर बारी; दीजई कुंकमि हाथ, जाणे मनमथ भांथ. कहीई किसिउं मंडाण, नवि दीसई तिह भांण; देखी हरख ईह रांण, कोई न लोपई आंण. ए इम उच्छ्व जोतउ, वासभवनि वर पुहतु; विषयादिक सुख मांणई, जातउ काल ना जाणई. परिशिष्ट-६ जीमूतवाहननी कथा (कथासरितसागरमांथी) दानवीर, दयाळु, पितृभक्त, बोधिसत्त्वना अंशावतार एवा विद्याधर राजकुमार जीमूतवाहने वंशपरंपरागत कल्पवृक्षने लोको, दारिद्रय दूर करवा मोकली दीधुं. तेनी कीर्तिनी ईर्ष्याथी पितराइओनो राज्य पडावी लेवानो ईरादो जाणी, रक्तपात अटकाववा जीमूतवाहन राज्यत्याग करी माता पिता साथे मलय पर्वत पर आश्रम बांधीने रहयो. एकवार पोताना मित्र सिद्धकुमारे मित्रावसुनी बहेन मलयवतीने गौरीमंदिरमां जोइ. परस्पर प्रत्ये अनुराग. विरहपीडित मलयवतीने फांसो खातां अटकावीने आकाशवाणीए कहयु, “विद्याधर चक्रवर्ती जीमूतवाहन तारो पति थशे.” त्यां जीमूतवाहन आव्यो ने मलयवती बची. मित्रावसुना कहेवाथी मलयवतीने जीमतवाहन जोडे परणावो. एक वार वनमां भमतां जीमूतवाहने हाडकानो ढग जोयो. मित्रावसुए खलासो कर्योः पोतानी माताने नागमाता कद्रए दासी बनावेली तेनं वेर लेवा गरुड पातालमा गमे त्यारे जईने नागोनो कच्चरघाण काढतो. छेवटे नागराज वासुकिए दररोज एक नागनो भक्ष्य दक्षिण समुद्रने कांठे गरुड माटे मोकलवानी शरत स्वीकारी. ए रीते गरुडे खाघेला नागोनां हाडकांनो त्यां ढग थयो. ____ जीमूतवाहननु हृदय द्रव्यु. ते त्यां रोकायो. ते दिवसे शंखचूड नागनो वारो हतो. विलाप करती तेनी माता तेने वळाववा साथे आवी. शंखचूडने बदले पोते भक्ष्य थवानी जीमूतवाहननी तत्परता. एवा पापना भागी थवानी बनेनी ना. माता पाछी फरी. शंखचूड गोकर्णना मन्दिरे अन्तिम दर्शन करवा गयो. त्यां गरुड आवतो जणायो. वध्यशिला पर जइ ऊभेला जीमूतवाहनने चांचनो प्रहार करी, पकडीने गरुड झाड पर जइ बेठो. जीमूतवाहननो नीचे पडी गयेलो ने लोहीमा तणाइ आवेलो चूडामणि मलयवतीए जोयो. सासु ससरा साथे ते शोधमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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