Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari

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Page 19
________________ एक परिशीलन सभ्यता अरण्य-जंगल में अवतरित हुई है।' और यह है भी सत्य । क्योंकि भारत का कोई भी पहाड़, वन एवं गुफा योग एवं आध्यात्मिक साधना से शून्य नहीं मिलेगी। इससे यह कहना उपयुक्त ही है कि योग को प्राविष्कृत एवं विकसित करने का श्रेय भारत को ही है। पाश्चात्य विद्वान् भी इस बात को स्वीकार करते हैं । २ ज्ञान और योग दुनिया की कोई भी क्रिया क्यों न हो, उसे करने के लिए सबसे पहले ज्ञान आवश्यक है। बिना ज्ञान के कोई भी क्रिया सफल नहीं हो सकती। आत्म-साधना के लिए भी क्रिया के पूर्व ज्ञान का होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य माना है। जैनागम में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि पहले ज्ञान फिर क्रिया । ज्ञानाभाव में कोई भी क्रिया, कोई भी साधनाभले ही वह कितनी ही उत्कृष्ट, श्रेष्ठ एवं कठिन क्यों न हो, साध्य को सिद्ध करने में सहायक नहीं हो सकती। अतः साधना के लिए ज्ञान आवश्यक है। परन्तु, ज्ञान का महत्व भी साधना एवं प्राचरण में है। ज्ञान का महत्व तभी समझा जाता है, जब कि उसके अनुरूप आचरण किया जाए। ज्ञान-पूर्वक किया गया आचरण ही योग है, साधना है । अतः ज्ञान योग1. Thus in India it was in the forests that our civilisation had its birth. - scdhna, by Tagore, p. 4. This concentration of thought (एकाग्रता) or onepointedness as the Hindus called it, is something to us almost unknown. -Sacred Book of the East. by Max Muller, Vol. I, p. 3. ___३. पढमं नाणं तम्रो दया। -दशर्वकालिक, ४, १०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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