Book Title: Yog Ek Chintan
Author(s): Fulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 17
________________ " ए । 'एते जाति-देश-काल-समयानवच्छिन्ना सार्वभौमा महानतम" कह कर अहिंसा प्रादि को सार्वभौम महाव्रत कहा गया है और उन्हे सभी देशो सभी जातियो और सभी कालो के लिये पाराधनोय कहा है। नियम के अन्तर्गत शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान को लिया गया है । ३३ वे सूत्र में हिंसा के कृत, कारित, अनुमोदित रूप की चर्चा की गई है । इत्यादि 'समस्त वर्णन इस बात को प्रमाणित करता है कि पतजलि योग के क्षेत्र मे भगवान महावीर से तीन सौ वर्ष बाद उनकी शब्दावली और उनको ध्यानप्रक्रिया से प्रभावित हुए और उन्होने उन्ही की साधना-पद्धति का आश्रय लेकर योग-दर्शन की रचना की। प्रस्तुत पुस्तक मे उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्द्र जी महाराज ने बत्तीस योगो की जो क्रमबद्ध व्याख्या की है वह व्याख्या योगदर्शन की गैली मे दृष्टिगोचर होती है, अत जो साधक योगी वनना चाहता है, उसके लिये प्रस्तुत पुस्तक का क्रमबद्ध स्वाध्याय उपयोगी होगा यह निश्चित है । ध्यान-योग पतञ्जलि का योग-दर्शन ध्यानयोग का समग्र रूप है। ध्यान साधना के क्षेत्र का प्राण है। कोई भी साधक इसके विना साधना मार्ग पर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। विश्व में जितने भी अध्यात्म का आधार लेकर चलने वाले सम्प्रदाय है, उनमे अनेक सैद्धान्तिक मत-भेद हैं, किन्तु ध्यान मे कही किसी का कोई मतभेद नही है। सभी धर्म-सम्प्रदायो को ध्यान मान्य है। , यह विकासशील' मानव जैसे-जैसे वाह्य ससार मे बढता योग एक चिन्तन] [सत्रह

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