Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तत्काल का जन्मा हुआ बालक, माता के स्तन पर मुँह दे कर स्तन पान करता है ( मुँह चला कर दूध पीने की क्रिया करता है) यह क्रिया उसने पूर्वजन्म के सिवाय कहाँ सीखी ? " संसार में कारण के अनुरूप ही काय होता है । कारण के प्रतिकूल कार्य नहीं होता । फिर अचेतन भूतों से चेतन आत्मा कैसे उत्पन्न हो सकता है ?"
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'मित्र संभिन्नमति ! मैं तुमसे ही पूछता हूँ कि चेतना प्रत्येक भूत से उत्पन्न होती है, या सभी भूतों के संयोग से उत्पन्न होती है ? यदि प्रत्येक भूत से उत्पन्न होती हो, तो चेतना भी भूतों के जितनी ही होनी चाहिए। यदि सभी भूतों के सम्मिलन से चेतना उत्पन्न होती हो, तो परस्पर भिन्न स्वभाव वाले भूतों से एक स्वभाव वाली चेतना कैसे उत्पन्न हो सकती है।
?"
तीर्थकर चरित्र
" रूप, गन्ध, रस और स्पर्श गुण पृथ्वी में है । रूप, रस और स्पर्श गुण पानी में है। तेज, रूप और स्पर्श गुण वाला है और एक स्पर्श गुण वाला वायु है । इस प्रकार इन भूतों में स्वभाव की भिन्नता है । ऐसे भिन्न स्वभाव वाले भूतों से अभिन्न स्वभावी चेतना कैसे उत्पन्न हो सकती है ?"
"यदि कहा जाय कि 'जिस प्रकार जल से भिन्न स्वभाव के मोती की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार भूत से चेतना की उत्पत्ति है," तो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि मोती में भी जल होता है और जल तथा मोती भूतमय ही है । इनमें विसदृशता नहीं है ।"
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'गुड़ जल और अन्य वस्तुओं से बनी हुई मदिरा में मादकता उत्पन्न होने का तुम्हारा दृष्टान्त भी उपयुक्त नहीं है, क्योंकि मद-शक्ति स्वयं अचेतन है । इसलिए चेतन के लिए अचेतन का उदाहरण घटित नहीं हो सकता ।
" एक पाषाण, पूजा जाता है और दूसरे पर मल-मूत्र किया जाता है-- ऐसी युक्ति भी आपकी व्यर्थ है । क्योंकि पाषण अचेतन है, उसे सुख-दुःख की अनुभूति नहीं होती । अतएव देह से भिन्न ऐसी आत्मा है और वह परलोक में जाती है और धर्म-अधर्म भी है और धर्म-अधर्म के परिणाम स्वरूप परलोक भी है-ऐसा सिद्ध होता है ।"
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'स्वामिन् ! जिस प्रकार अग्नि के ताप से मक्खन पिघल जाता है, उसी प्रकार स्त्री के आलिंगन मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है । अनर्गल एवं अत्यन्त रसयुक्त आहार के उपभोग से मनुष्य, पशु के समान उन्मत्त हो जाता है । चन्दन, अगर, कस्तुरी और घनसार (तथा इत्रादि ) आदि सुगन्धी पदार्थ से कामदेव, मनुष्य पर आक्रमण करता है । शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श, ये इन्द्रियों के विषय, आत्मा को विकारी बना कर
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