Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामाणः
सभी श्रुतज्ञानोंसे बढिया पदार्थ है, फिर उसमें भी श्रुतका अभ्यास कारण है । किन्तु मतिज्ञान तो इतना व्यापक नहीं है । अतः पक्षमें नहीं ठहरनेके कारण उक्त तीनों हेतु असिद्ध हैं।
सामान्यार्पणायां हि मतिश्रुतयोः साहचर्यादयो न विशेषार्पणायां पौर्वापर्यादिसिद्धेः। कार्यकारणभावादेकत्वमनयोरेवं स्यादिति चेत् न ततोपि कथंचिद्भेदसिद्धेस्तदाह ।
___सामान्यकी अपेक्षा विचारा जाय तो मतिश्रुत ज्ञानोंमें सहचरपना आदि धर्म ठहर जाते हैं, किन्तु विशेष परिणामोंकी विवक्षा करनेपर तो पहिले पीछे होनापन आदिकी सिद्धि हो रही है । यदि कोई यों कहे कि मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है, इस प्रकार पूर्वापर पदार्थों में कार्यकारण भाव होनेसे इन मतिश्रुत्वका एकपना हो जावेगा, आचार्य कहते हैं कि यों तो न कहना । क्योंकि तिस कार्य कारण भावसे भी उनमें कथंचित् भेद ही सिद्ध होगा । उसको आचार्य वार्तिकद्वारा स्पष्ट कहते हैं । सुनो
कार्यकारणभावात्स्याचयोरेकत्वमित्यपि । विरुद्धं साधनं तस्य कथंचिद्भेदसाधनात् ॥२८॥
कार्यकारण भाव होनेसे उन श्रुतज्ञान और मतिज्ञानमें अभेद है, इस अनुमानका हेतु भी विरुद्ध हेत्वाभास है । क्योंकि वह कार्यकारणभाव तो कथंचित् भेदका साधन करता है। सर्वथा एक हो रहे घट, घट, या ज्ञान, ज्ञानका कार्यकारणभाव नहीं माना गया है। अतः एकत्वरूप साध्यसे विपरीत कथंचित् भेदके साथ व्याप्तिको रखनेके कारण तुम्हारा कहा गया कार्यकारणभावहेतु विरुद्ध है।
न धुपादानोपादेयभावः कथंचिद्भेदमंतरेण मतिश्रुतपर्याययोर्घटते यतोस्य विरुद्धसा. धनत्वं न भवेव, कथंचिदेकत्वस्य साधने तु न किंचिदनिष्टम्। ___मतिज्ञान और श्रुतज्ञानरूप पर्यायोंका कारण कार्यरूपसे हो रहा उपादान उपादेयपना कथंचित् दोनोंमें भेदको माने विना नहीं घटित होता है जिससे कि इस कार्यकारणभाव हेतुको विरुद्ध हेत्वाभासपना न हो सके। हां, कथंचित् एकपनेका दोनोंमें साधन कियाजाय तब तो हम स्याद्वादियोंके यहां कोई अनिष्ट नहीं है। द्रव्यकी पूर्वपर्याय उपादान होती है और उस द्रव्यकी उत्तरपर्याय उपादेय होती है। मतिके एक समय ही पीछे श्रुतज्ञान होता है, अतः मति उपादान है, श्रुत उपादेय है । किन्तु उत्पतिकी अपेक्षा श्रुतज्ञानका मतिज्ञान निमित्तकारण है। क्योंकि श्रुतज्ञानकी धारामें कैई क्षण पूर्वमें रहनेवाला मतिज्ञान भी कारण माना गया है।
गोचराभेदतश्चेन सर्वथा तदसिद्धितः। श्रुतस्यासर्वपर्यायद्रव्यग्राहित्ववाच्यपि ॥२९॥.....