Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
तत्वार्थसूत्रे
तद्यथा--अण्डजादयः, अण्डजाः आदिना जरायुजाः-रसजाः संस्वेदजाः-सम्मूर्छिमाःउद्भिज्जाः-औपपातिकाश्च । तत्र-गर्भसंमूर्छिमोपपातलक्षणत्रिविधजन्मसु अण्डज-पोतज–जरायुजानां गर्भाज्जन्म भवन्ति ।
तत्राण्डजास्तावत्-सर्प-गृहगोधिकादयः । पोतजाः-सिंह-व्याघ्र-चित्रक-मार्जारादयः अनावरणजन्मानः । जरायुजाः-गो-महिष-मनुष्यादयः सावरणजन्मभाजो भवन्ति । रसजास्तुमद्यादिविकृतघृतादिरसे चर्मादियोगे जाताः कृम्यादयो प्रथमधातूद्भवाश्च जीवा रसजाः संस्वेदजास्तु-संस्वेदःप्रस्वेदः, तत्र जाताः-संस्वेदजाः कुक्षाद्युत्पन्ना जीवाः संस्वेदजा बोध्याः ।
समन्तात्-पुद्गलानां मूर्छन-संघातीभवनं संमूर्छः तत्र भवाः-संमूर्छिमाः सर्प-दर्दुर-मनुष्यादयोऽपि सम्मूर्च्छनाद् उत्पद्यमानत्वात् संमूर्छिता उच्यन्ते । उद्भिज्जास्तरु- गुल्मादयःऔपपातिक–देव-नारका उच्यन्ते ॥१०॥
तत्त्वार्थ नियुक्ति:--पूर्वोक्तान् सान् विभागपूर्वकं विशदरूपेण प्रतिपादयितुमाह"तसा अणेगविहा अण्डयाइया” इति । त्रसाः-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पञ्चेन्द्रिया जीवाः अनेकविधाः-नानाप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः सन्ति । तद्यथा-अण्डजाः आदिपदेन पोतजाःजरायुजाः-रसजाः-संस्वेदजाः संमूर्छिमाः-उद्भिज्जाः-औपपातिकाश्च गृह्यन्ते । तत्र वक्ष्यमाणेषु गर्भ-संमूर्छिमोपपातलक्षणेषु त्रिविधजन्मसु, अण्डज-पोतज–जरायुजानां गर्भाज्जन्म भवति । सम्मूर्छिम, उद्भिज्ज और औपपातिक । जीवों का जन्म तीन प्रकार का है—गर्भसम्मूर्छिम और उपपात । इनमें से अण्डज, पोतज और जरायुज जीव गर्भजन्म से उत्पन्न होते हैं।
अण्डे से उत्पन्न होने वाले सर्प छिपकली आदि अण्डज हैं । जो विना आवरण के उत्पन्न होते हैं 'ऐसे सिंह, व्याघ्र, चीता बिलाव आदि जरायुज हैं । चमड़े की पतली झिल्ली आवरण में उत्पन्न होने वाले गाय भैंस मनुष्य आदि जरायुज कहलाते हैं। मद्यादि रस में उत्पन्न होने वाले कृम्यादि कीडे आदि उत्पन्न होनेवाले रसज कहलाते हैं। पसीने में उत्पन्न होने वाले जू आदि जीव संस्वेदज कहलाते हैं। स्त्री-पुरुष के समागम के बिना उत्पन्न होने वाला प्राणी संमूर्छ कहलाता है । सर्प, मेढक , मनुष्य आदि भी संमूर्छिम जन्म से उत्पन्न होने के कारण संमूर्छिम कहलाते हैं । ठीक ये त्रसजीव हैं ? पतंग आदि उद्भिज्ज कहलाते हैं। देव और नारक औपपातिक होते हैं ॥१०॥
तत्त्वार्थनियुक्ति-पूर्वोक्त त्रस जीवों का भेद करके विशद रूप से प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं-वस अर्थात् द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रियजीव अनेक प्रकार के हैं। जैसे---अण्डज, पोतज, जरायुज. रसज, संस्वेदज, संमूर्छिम, उद्भिज्ज और औपपातिक आगे कहे जाने वाले गर्भ, सम्मूर्छिम और उपपात, इन तीन प्रकार के जन्मों में से अण्डज, पोतज और जरायुज जीवों का गर्भ से जन्म होता है।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧