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( १७ ) की लेश्याएँ १६८, देवों की वासना-तृप्ति १६९ भवनवासी और व्यन्तर देवों के उपभेद एवं विशेष वर्णन १७१, तालिका १७४, व्यंतर देवों के प्रति भ्रान्त धारणाओं का निरसन १७७, व्यंतर देवों के उपभेदों की तालिका १७८-७९, ज्योतिषी देव-चर-अचर और उनके द्वारा किया गया काल विभाग १८०, ग्रहनक्षत्र आदि की तालिका १८२, व्यवहार काल की तालिका १८४, आधुनिक विज्ञान की भूगोल खगोल सम्बन्धी मान्यताएँ १८५, सौर मण्डल की उत्पत्ति १८६, जीवन-विकास १८७, पृथ्वी मण्डल १८८, चन्द्रमा सम्बन्धी जानकारी १८८, सूर्य सम्बन्धी विशेष वर्णन १८९,पृथ्वी की स्थिरता -पश्चिमी विद्वानों के मत १९१, वैमानिक देव वर्णन १९३ बारह कल्प १९४, अवस्थित १९५, नवग्रैवेयक और अनुतर विमान १९५, देवों के कुल १९८,भेद १९६, देवों सम्बन्धी विशेषताएँ १९७, लोकान्तिक देव वर्णन तथा इनकी विशेष स्थिती २०३, अनुत्तर विमानवासी देवों की विशिष्टता २०५, तिर्यंच यौनिक जीवों का लक्षण २०६, देवों की उत्कृष्ट जघन्य आयु २०७, पल्योपम का माप २१५, सागर का प्रमाण २१६, पल्य और सागर के विषय में आधुनिक गणित २१६, योजन का प्रमाण २१७, रज्जु का माप २१७, रज्जु के विषय में आधुनिक वैज्ञानिकों का गणित, वान ग्लास नेप्पिक द्वारा प्रस्तुत रज्जु का माप २१८।
अध्याय ५ : अजीव तत्त्व वर्णन
२१९-२५४
अजीवकाय के भेद २१९, द्रव्य का लक्षण २२२, पुद्गल का रूपित्व २२२, द्रव्यों की विशेषता २२३, द्रव्यों में प्रदेश संख्या २२५, द्रव्यों का अवगाह २२५, द्रव्यों के कार्य और लक्षण २३३, धर्म द्रव्य और ईथर २३४, आकाश के गुण २३५, काल के उपकार २३६, पुद्गल का विवेचन २३८, पुद्गलों के गुण २३९, पुद्गलों के पर्याय २४०, अणु एवं स्कन्ध के निर्माण आदि के हेतु २४२, द्रव्य का विवेचन २४३, अर्पित-अनर्पित का अर्थ २४५, बन्ध के हेतु अपवाद आदि २४६, श्वेताम्बर दिगम्बर बन्ध सम्बन्धी मान्यता के भेद२४७, द्रव्य का लक्षण २४९, काल २५०, गुण और परिणाम का स्वरूप,भेद और विभाग २५२ ।
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