Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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होता है और अपनी सारी शक्ति उस कार्य में लगा देते हैं। आज सारे देश में शायद ही उनके जितना परिश्रमी दूसरा साधु हो। अब तो महाराज श्री कहने लगे कि मैं न तो यह पुस्तक लिखू और न ही बड़ी पुस्तक की टीका ही लिखू। इस प्रकार जब उनका मन हुआ तब समाज व साधुओं के पुण्य ने भी साथ दिया और वह पुस्तक मिल गयी। .
___ एक दिन हम महाराज जी से पद्मपुराण पढ़ रहे थे उसमें निकला कि राम सीता के विरह में कितने दुःखी थे। तो गुरुदेव कहने लगे कि देखो क्षायिक सम्यग्दृष्टि राम एक स्त्री के पीछे इतने दुःखी हो रहे है। तो मैने कहा-गुरुदेव क्षमा करना, मुझे याद है जब आपकी पुस्तक नहीं मिल रही थी तब आप भी तो ऐसे दुःखी हो गये थे। जैसे राम हनुमान का मुख देख रहे थे कि यह क्या सूचना लाया है वैसे ही आप भी पुस्तक के बारे में सूचना लाने वाले को देखते थे और उस समय आप हर कार्य से उदासीन हो चुके थे। परन्तु जब पुस्तक मिल गयी, यह सूचना मिली तो पुन: आप उत्साह से भर गये
और आप इस. कार्य में ऐसे जुट गये कि 1 1/2 माह में इतनी सुन्दर टीका जो आज की नई पीढ़ी, बच्चे, युवक व विद्वान सबकी समझ में आने वाली वैज्ञानिक व धार्मिक ढंग से लिखी गयी जो आज पढ़ने वाली समाज व बच्चों को मार्ग प्रशस्त करके हमें जैनधर्म का हर तरह से ज्ञान कराने के लिए ज्ञान दीपिका का काम करेंगी। क्योंकि गुरुवर की लेखनी व दिल दोनों ही व्यापक है वे जब पढ़ाते हैं तब भी सारा निचोड़ दे देते हैं चाहे वह कोई भी विषय हो उसमें सभी विषयों का समन्वय करके पढ़ाते है, लिखते हैं।
इनके इस परिश्रम से तैयार की गयी यह धर्ममयी सैद्धान्तिक “स्वतन्त्रता के सूत्र" रूपी माला पहन कर अपने इस जीवन के अंग-प्रत्यंगों को संयम के अलंकारों से सुसज्जित कर मोक्षमार्ग पर गमन करते हुए उस मुक्ति श्री का वरण करें, जिसे पा लेने के बाद संसार की हर वस्तु तुच्छ है त्यजनीय है। गुरूवर ने इतना अधिक परिश्रम किया सिर्फ इसी उद्देश्य को लेकर कि आज की वैज्ञानिक व तार्किक समाज जो धर्म से विरक्त हो गयी है कुछ सामाजिक कुतत्त्व व रूढ़ियों के कारण, ऐसे उन सुषुप्त चेतनाओं को जगाकर पुनः सारे देश व समाज में जैनधर्म एक वैज्ञानिक व लोजीक (तार्किक) धर्म .
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