Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 04
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका द्वि.शु. अ. १ पुण्डरीकनामाध्ययनम् 'बहुपुक्खला' बहुपुष्कला आगाधज सवत्वात् गम्भोरा, 'पद्धदा' लब्धार्था जल पुष्पसंयुक्ता, पुष्कराणि-कमलानि विद्यन्ते यस्णं सा पुष्करिणी, 'पासाईया' प्रसादिका, दर्शनादेश चित्तमोहिनी 'दरिसणिज्जा' दर्शनीया द्रष्टुं योग्या 'अभि रूवा' अभिरूपा-प्रशस्तरूपस्तो 'पडिरूमा' प्रतिरूपा नास्ति प्रतिरूपं सशरू. वत् अन्यद यस्याः सा प्रतिरूपा, अनन्यसाधारणी। 'ती से गं तस्याः वल्ल 'पुकवरिणीए' पुष्करिण्याः 'तस्थ तत्थ देसे देसे' तत्र तत्र देशे तच्छन्दे देशेव वीप्सा राद्धलाच्चतुर्दिक्षु इत्यर्थों लभ्यते । 'तहि तर्हि तस्मिन् तस्मिन् देशे सर्वस्मिन्प्रदेशेच पुष्करिण्यां व्याप्तानि । 'बहवे पउमवरपोंडरिया बुइया' बहूनि पमवरपुण्डरी काणि उक्तानि, तस्मिन् सरसि अनेक नातीयानि कमानि विद्यन्ते । 'अणु. पुव्वुट्टिया' आनुपूर्व्या-उत्थितानि उत्तमोत्तमक्रमेण शतपत्रसहस्रपत्रभेदभावेन तत्राऽनेकविधानि कमलानि सन्ति 'उस्सिया' उच्छ्रितानि ऊ गतानि 'रुइला' रुचिराणि-मनोज्ञानि 'वण्णमंता' वर्णन्ति-नील-पीत-रक्त-श्वेतानि । 'गंध. (अनुपम) हो । उस पुष्करिणी के देश देश में (जगह जगह) सभी दिशाओं में विविध जातियों के कमल मौजूद हों। वे कमल अनुक्रम से ऊँचे उठे हों। उत्तमोत्तम क्रम से शतपत्र सहस्रपत्र के भेद से अनेक विध हो। वे ऊंचे, मनोज्ञ, सुन्दर नील, पीत, रक्त और श्वेत वर्ण वाले हो, सुन्दर विलक्षण गंध से सम्पन्न हो, विलक्षण मधुपराग से युक्त हो, कोमल स्पर्श वाले हों आइलादकारी, दर्शनीय, अभिरूप सुन्दर रूपवगन और प्रतिरूप अर्थात् असाधारण हों। ___ उस पुष्करिणी के बिलकुल मध्य भाग में एक पद्मवर पुण्डरीक नामका श्वेत कमल कहा गया है। वह श्वत कमल विलक्षण रचना से युक्त, पंक से ऊपर निकला हुआ, बहुत ऊंचा, सुन्दर, प्रशस्त वर्णवाला, રણ (અનુપમ) હૈય, તે વાવના દેશ દેશમાં એટલે કે સ્થળે સ્થળે સઘળી દિશાઓમાં જુદી જુદી જાતના કમળો વિદ્યમાન હોય, તે કમળ અનુક્રમથી ઉંચા થયા હય, એટલે કે ઉત્તમત્તમના ક્રમથી શતપત્ર કમલ સહસ્ત્રપત્ર, વિગેરેના ભેદથી અનેક પ્રકારના કમળ હોય તે ઉંચા, મનેશ, સુંદર નીલ, પીળા, રતા, અને ધળ વર્ણવાળા હોય, સુંદર વિલક્ષણ ગધથી યુક્ત હોય આહાદકારી, દર્શનીય અભિરૂ૫, સુંદર રૂપવાન અને પ્રતિરૂપ અર્થાત અસાધારણ હોય, તે પુષ્કરિણી-વાવના બિલકુલ મધ્ય ભાગમાં એક પદ્મવર પુંડરીકનામનું ધળું કમળ કહેલ છે. તે વેત કમળ વિલક્ષણ રચનાથી યુક્ત, કાદવથી ઉપર નીકળેલ ઘણું ઉંચુ, સુંદર વખાણવા લાયક વર્ણ-રંગવાળું, મનને For Private And Personal Use Only

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