Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 04
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. १ पुण्डरीकनामाध्ययनम्
- मूलम्-सुयं मे आउसं तेणं भगवया एकमक्खायं । इह खलु पोंडरीए णामझयणे, तस्स णं अयमद्रे पण्णत्ते-से जहा णामए पुक्खरिणी सिया बहुउदगा बहुसेया बहुयुकवला लट्ठा पुंडरिकिणी पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया, अणुपुबुट्रिया ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपॉडरीए बुइए, अणुपुव्वुट्ठिए उस्सिए रुइले वन्नमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादीए जाव पडिरूवे। सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया अणुपुव्वुट्टिया ऊसिया रुइला जाव पडिरूवा, सव्यावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एर्ग महं पउमवरपोंडरीयं बुइयं अणुपुव्वुट्टिए जाव पडिरूवे ॥सू०१॥
छाया-श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम् । इह खलु पुण्डरीकनामाध्ययनम् , तस्य खल्वयमर्थः प्रज्ञप्तः । तद्यया नाम पुष्करिणी स्यात् बहूदका, बहुसेया, बहुपुष्कला, लब्धार्था, पुण्डरीकिणी, मासादिका, दर्शनीया, अभिरूपा मतिरूपा । तस्याः खलु पुष्करिण्या स्तत्र तत्र देशे देशे तस्मिन् तस्मिन् बहूनि पनवरपुण्डरीकाणि उक्तानि, आनुपूर्या उत्थितानि उच्छ्रितानि रुचिराणि वर्णवन्ति गन्धवनि रसवन्ति स्पर्शवन्ति भासादिकानि दर्शनीयानि अमिरूपाणि पतिरूपाणि । तस्याः पुष्करिण्या बहुमध्यदेशमागे एक महन् पावरपुण्डरीकमुक्तम् स्कंध में उन्हीं संसार से छुड़ाने वालों का उदाहरण है। इस संबंध से प्राप्त द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन का यह प्रथम सत्र है-'सुयं मे आउसं तेणं' इत्यादि ।
આધમાં સંસારથી છોડાવવા વાળા એજ વિષયનું વિવેચન કરવામાં આવેલ છે. એ સંબંધથી પ્રાપ્ત થયેલ બીજા શ્રુતસ્કંધના પહેલા અદયયનનું ML पडे सूत्र छ. 'सूर्य मे आउसं तेणं' त्या
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