Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 04
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री वीतरागाय नमः॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालप्रतिविरचितया समयार्थबोधिन्याख्यया व्याख्यया समसङ्गतम् ॥श्री-सूत्रकृताङ्गसूत्रम्॥ (चतुर्थो भागः) अथ द्वितीयश्रुतस्कन्धः पारभ्यतेप्रथमश्रुतस्कन्धसमाप्त्यनन्तर द्वितीयश्रुतस्कन्ध प्रारभ्यते । प्रथमश्रुतस्कन्धे य एवार्थाः संक्षेपतो निरूपितास्त एवाऽस्मिन् द्वितीय श्रुतस्कन्धे युक्तिपुरस्सरं विस्तरेण निरूपिता भविष्यन्ति । संक्षेपविस्ताराभ्यां निरूपिताः पदार्थाः सरलतया बुद्धिपथमधिरोहन्ति । अतः प्रथमश्रुतस्कन्धे ये पदार्थाः प्रतिपादिता स्त एव विस्तरतो द्वितीयश्रुतस्कन्धे प्रतिपाद्यन्ते । अथवा-प्रथमश्रुतस्कन्धे ये विषयाः मरूपिता स्त एव दृष्टान्तप्रदर्शनेन सरलतया बोधयितुं द्वितीय. द्वितीय श्रुतस्कन्ध का प्रारंभ प्रथम अध्ययन प्रथम श्रुतस्कंध की समाप्ति के पश्चात् दूसरा श्रुतस्कंध प्रारंभ किया जाता है। प्रथम श्रुतम्कंध में संक्षेप से जिन अर्थों का निरूपण किया गया है, वे ही अर्थ दूसरे श्रुतस्कंध में युक्तिपूर्वक और विस्तार से कहे जाएंगे । संक्षेप और विस्तार से कहे गए पदार्थ सरलता पूर्वक समझ में आ जाते हैं। अथवा प्रथम श्रुतस्कंध में जिन विषयों की प्ररूपणा की गई है, वही दृष्टान्त के द्वारा सरलता से समझाने के लिए द्वितीय श्रुतस्कंध भीत श्रुत धन प्राम अध्ययन ५३ તે પહેલા શ્રુતસ્કંધની સમાપ્તિ પછી આ બીજા શ્રુતસધને પ્રારંભ કરવામાં આવે છે. પહેલા તસ્કંધમાં સંક્ષેપથી જે અર્થોનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે, એજ અર્થ આ બીજા ગ્રુતસ્કંધમાં યુક્તિપૂર્વક અને વિસ્તારથી કહેવામાં આવશે. સંક્ષે૫ અને વિસ્તારથી કહેવામાં આવેલ પદાર્થ સરળતા પૂર્વક સમજવામાં આવી જાય છે. અથવા પહેલા શ્રુતસ્કંધમાં જે વિષયની પ્રરૂપણ કરવામાં આવી છે, એજ દષ્ટાન્ત દ્વારા સરલ પણથી સમજાવવા માટે બીજે શ્રુતસ્કંધ પ્રારંભ For Private And Personal Use Only

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