Book Title: Suryapraksh Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 11
________________ [ 10 ] बनाकर उनके रचयिता भद्रबाह श्रुतकेवली, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, जिनसेन, आदिको बना दिया है । और इस प्रकार जनताकी आंखों में धूल झोंकनेकी असफल कुचेष्टा की है। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने प्रन्थ पर तो अपना नाम दिया है परन्तु उसमें भ० महावोर आदिके मुखसे इस प्रकार के वाक्य कहलाये हैं जो जैनधर्म के विरुद्ध, क्षुद्रतापूर्ण और दलबन्दोके आक्षेपोंसे भरे हुए हैं। इसी श्रेणोके ग्रंथों में 'सूर्यप्रकाश' भी एक है, जिसकी अधार्मिकता और अनौचित्यका इस पुस्तकमे मुख्तार साहिबने बड़ी अच्छी तरहसे प्रदर्शन किया है । इस प्रकारके जाली प्रन्योंका भंडाफोड़ करने के कार्यमें मुख्तार साहिब सिद्धहस्त हैं। आपने भद्रबाहु-संहिता, कुन्दकुन्द-श्रावकाचार, उमास्वामी. श्रावकाचार, जिनसन-त्रिवर्णाचार आदि जालो प्रन्योकी परीक्षा करके शास्त्रमूढताको हटानेका सफलतापूर्ण और प्रशंसनीय उद्योग किया है। ग्रंथ परोक्षाके इस कार्यको सैकड़ों विद्वानोंने जहाँ मुक्त कण्ठले प्रशंसा की है वहाँ इस कार्य के निन्दकाको भो कमी नहीं है। परन्तु इससे अन्धविश्वासियों और स्वार्थियोंको अस्तित्व-सिद्धिके सिवाय और कुछ प्रतीत नहीं होता। सत्यके दर्शन बड़े सौभाग्यसे मिलते हैं । दर्शन होनेपर उसतक पहुंचना बड़ी वीरताका कार्य है और पहुंच करके उसके चरणों में सिर झुकाकर आत्मोत्सर्ग करना देवत्वले भी अधिक उच्चताका फल है। जिनका यह सौभाग्य नहीं है, जिनमें यह वीरता नहीं है, जिनमें यह उच्चता नहीं है वे असत्यके जालमें फंसकर अपना सर्वस्व नष्ट करते हैं । इतनाही नहीं; किन्तु उनका ईलु हदय दूसरोंकी सत्य-प्राप्तिको सहन नहीं कर सकता। इसलिये वे निन्दा करते हैं, गालियाँ देते हैं, कदाक्षेप

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