________________ - स्त्रीचरित्र. नहीं होसकती, जैसा कि धनवालोंका जीवन होता है। वैसाही तुम्हाराभी जीवन होगा, अमर होनेकी आशा तो धनसे नहीं है, यह सुन मैत्रेयी बोली, हे महात्मन् जिससे मैं अमर नहीं हूंगी तो उससे मेरा क्या प्रयोजन निकलेगा ? जो अमर होनेका उपाय आप जानते हो तो वही मुझसे कहिये, याज्ञवल्क्यजी बोले, हे प्रिये ! तुम पहलेही मुझको बहुत प्यारी थी. और अब तो बहुतही प्यारी वार्ता मुझसे पूछती हो, इससे मेरा चित्त तुमसे बहुतही प्रसन्न है, मेरे समीप आकर बैठो तुमसे अमर होनेका उपाय कहताहूं सावधान मनसे मेरे वचनोंको हृदयमें धारण करो, मैत्रेयीने कहा, आप कहिये में ध्यान पूर्वक श्रवण करती हूं याज्ञवल्यजी कहते हैं, हे मैत्रेयि! जो स्त्री अपने पतिमें प्रेम रखती है सो पतिके प्रयोजनसे नहीं केवल अपनेही प्रयोजनसे पतिमें प्रेम रखती है क्योंकि दरिद्री और मूर्ख पतिमें वैसा प्रेम नहीं करती जैसा कि कमाऊ और बुद्धिमान तथा निरोगपतिमें प्रेम रखती है और पुरुषभी स्त्रीमें अपनेही लिये प्रेम P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust