________________ A dStin भाषाटीकासहित.. 163 दुर्गावती रणसे नहीं हटो एक तीक्ष्णवाण महारानीकी - आंखमें लगा, रानीने शीघ्र उस बाणको पकडकर खीं चलिया, एक टुकडा लोहेका नेत्रमे रहगया, इतनेमें दूसरा तीर कंठमें आकर लगा, उसेभी खींचकर रानीने निकाल डाला हरंतु पीडा होने और रूधिर वहनेके कारण आंखके नीचे अंधेरा आने लगा, मूछा खाकर हाथीके हौदे पर ठिरने लगी, उस समय एक सरदारने कहा, महारानी! आज्ञा हो तो आपको रणसे बाहर ले - चलूरानीने उत्तर दिया कि थोडेसे जीवनकी आशासे रणसे विमुख होना हमको उचित नहीं है, यह कह रानीने कहा कि यदि तुम सच्चे स्वामिभक्त हो तो शीघ्र वा मारकर हमारे प्राण हर लो, यह सुनकर उस सरदारने फिर कहा कि मेरी सम्मती यही है कि आपको किसी सुरक्षित स्थान पर ले चलूं, रानीने जब देखा कि, सरदारका चित्त हमारे मारनेपर दुःखी होताहै और अश्रुपात करता है, तब रानीने शत्रुओंसे अपनेको धीराजान कर - मनमें विचार किया कि ऐसा न हो शत्रुलोग हमको Ac.Gunratnasuri M.S. Jur Gun Aaradhak Trust