________________ 172 स्त्रीचरित्र.. है रानीको छोडकर वृद्धा चली गई, तब रानीके पास आकर. अकबर-प्यारी ! इधर आओ जरा आराम फर्माओ किस सोचमें हो, देखो यह वह शाहन्शाहे देहली सिजकी निगाकी कोर दुनियाके बादशाह देखते रहते - हैं, आज तुमारे कदमोंकी गुलामी की ख्वाहिश करता हाजिर है. " रानी-(मुंह फेरकर रूखे स्वरसे बोली) देख अकबर तू बहुत बडे सिंहासन पर बैठा है ऐसे दुष्कर्मोंसे इस राज्य सिंहासनको कलुषित न कर और मुझे अभी मेरे घर पहुंच दे. :: अकबर-(रानीका हाथ पकडना चाहा तब रानी हाथ झटककर हटगई ) अकबर बोला ऐ जाने जा इस नीम जां को अब न सताओ, तुमारे इस जां निसारन तुमारी नाजनी अदापर फिदा होकर एक कवित्त तस नीफ किया है उसे जरा सुन लो. .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust