________________ भाषाटीकासहित. 173 सवैया. / 'शाह अकब्बर बालकि वाह अचिन्त गही चल भीतर भौने / सुन्दरि द्वारहि दृष्टि लगायके भागिवेकी भ्रम पावत गौने // चौकत सो सब ओर विलोकत संक सकोच रही सुख मौने / यों छवि नैन छबीले के छाजत मानो विछोह परे मृग छौने' // 1 // - रानी-(क्रोधसे ) रे नराधम दिल्लीपति कुलांगार मैं राजपूत वाला हूं मेरा अंग स्पर्श न करना नहीं तो अभी तुझे तेरे अपराधका दंड दूंगी. अकबर-(हाथ जोडकर) नहीं नहीं खफा होनेकी बात नहीं हैं, देखो यह नौ लखाहार यह वेशकीमत चम्पाकली यह वेवहा मोतियोंका सतलडा ये सब एकसे एक उमदा जवाहिरात सब तुह्मारी नजर हैं और यह दिल्लीका बादशाह हमेशाके लिये तुम्हारा गुलाम है P.P.AC..Gunratnasuri M. Jun Gun Aaradhak Trust.