________________ 174 स्त्रीचरित्र. आज अपनी जरासी मेहरवानगीकी निगाहसे इस बादशाहतको विला कीमत खरीद सकती हो. - रानी (लाल लाल आई कर निर्लजभावसे बोली) क्यों रे नर पिशाच ? तू मेरी बात न सुनेगा ? क्या तेरा कालही तेरे शिर पर नाच रहा है ? क्या आज मुझीको नरपति हत्यासे अपना हाथ अपवित्र करना होगा, सुन मैं तेरी सब दुष्टता सुन चुकी हूं और आज तेरे हाथसे निर्वाध राजपूत बालाओंके सतीत्व रक्षार्थ मैं तैयार होकर आई हूं तुझसे फिरभी यही कहती हूं कि अपनी इस नीचताके कामको छोड और अपने कर्तव्यको देख यह सुनकर अकबरनने रानीकी बात पर कुछभी ध्यान न दिया और रानीका हाथ फिर पकडना चाहा, तब रानीने झपटकर झट. अकबरको पकडकर. धरतीपर पटकदिया, और फुर्तीसे छपाये हुये कटारको कमरसे निकाल अकबरकी छाती पर बैठ हां कती हुई बोली, .. रे नराधम ! जो तू मानताही नहीं, तो आज तेरा यहा निफ्टीरा कीये देती हूं, और तेरे बोझसे पृथ्वीको हलका / Ac. Gunratnasuri.M.S. GueAaradhat