Book Title: Stree Charitra Part 02
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 207
________________ भाषाटीकासहित. 199 मुझको कभी प्राप्त न होगा, इस कारण मेरे इस शुभकायमें विन्द डालना आपको योग्य नहीं हैं, - इस प्रकार सुनकर जब अहल्यावाईने देखा कि समुझाये बुझाये से नहीं मानेगी, तव लाचार होकर सती होनेकी आज्ञा देदो, अर्थी और सतीके साथ वाई नंगे पवि चिता तक आई, सती होनेके समय वाईको दो ब्रम्हण पकडे खडे थे, महादु .से वाईको छातो फटी जाती थी, कई वार वाईने चाहा कि चितामेंसे प्यारी लडकीको खींच लूं परंतु वह कहां, वातकी वातमें सती सहित दोनों शरीर भस्म होगये, वाई पछाड खाकर गिरपडी, और अचेत होगई, कुछ देरके उपरांत सावधान होनेपर लोगों वाईको नर्वदामें स्नान कराया, और घर ले आये, तीन दिन पर्यन्त वाईने मारेदुःखके अन्न जलको त्याग किया. मुख लपेटे एकान्तमें पड़ी रही, फिर कुछ सोच समझकर सावधान हुई और चित्तमें सन्तोष करके सतीके चिर स्मरणार्थ एक दिव्य मन्दिर वनवा दिया... वाईका हृदय दयासे परिपूर्ण था, हजारों लाखों Ac:Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust.

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