Book Title: Stree Charitra Part 02
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 203
________________ - भाषाटीकासहित. नहीं रखती थी, उसको दृढ विश्वास था कि, मेरी प्रजा पूर्ण राजभक्त है, अपनी प्रजामेंसे किसीकोभी अन्यायदृष्टि से नहीं देखती, और प्रजाकी वृद्धिमें सदा उद्योग करतीहुई प्रसन्न रहती थी. - इस प्रतापवती महाराणीके राज्यमें गोडोंने लूटमार कारण छोड दिया, उन सबको वह सन्तुष्ट रखती थी कभी कभी किसी किसी अन्यायी और हठी गोडको दण्ड शिक्षाभी देती थी, अपने मतसे विरुद्ध मतवाले कोभी कृपादृष्टिसे देखती हुई अहल्यावाई धर्मराज्य करती थी, किसीको दुःख नहीं था, इसके प्रवन्धमें कभी कसी प्रकारका उपद्रव नहीं उठा, एक वार महाराणा उदयपुरने अहल्याबाईके राज पर चढाई की, महाराणी अहल्याबाई ऐसी वीरतासे लडी कि महाराणाके छक्के छूटगये और सन्धिका प्रस्ताव किया, अन्तको महाराणीने अपने उदार स्वभावसे दयालु होकर सन्धिको स्वीकार कर लिया, महाराणी अहल्यावाई अपने कर्मचारियोंकों वदलती नहीं थी, क्योंकि राजकर्म चारियोंको वदलने P.R.AC..Gunratnasuri.M.S:.. Jun Gun Aaradhak Trust

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