________________ भाषाटीकासहित 93 नहीं. विधाताके विमुख और दैवके प्रतिकूल हुये विना किसकी ऐसी दशा होती है ! हा ! जिस ऐरावत हाथीने अनेक वार महाघोर युद्धमें स्वर्गवासी महाराजको अटल भावसे अपनी पीठपर धारण किया, सैंकडो बाण लगनेसे अंग क्षत होनेपरभी जो एक पद रणमें पोछे न हटा, वही ऐरावत एक साधारण बाण लगनेसे रणसे भडक कर भागता हुआ एक वेरहो नदीमें जा डूबा, फिर जिससे नाक देशकी स्वाधीन रक्षाही व्रत था. नि. ज जीवनसे भी जिसे स्वाधीनता अधिक प्रिय थी महा महा विपदमें भी जो सेना स्थिर और निःशङ्कित रही आज वही सेना रणसे भाग गई. स्वर्गवासी महाराजको इतनाभी समय न मिला कि रुधिर भरे वस्त्रोंसे अश्वारोहण कर घर तो चले आते हाय. महाराज निहत. हुये क्या कोई वीर क्षत्री महागजके असावधान होनेपर शस्त्र पला सकता था. यह धोके बाज यवनही का काम था. कि असावधान महाराज पर अस्त्र चलाय शाल्मली वृक्ष एक क्षुद्र प्राणीके नखघातसे छिन्न होगया, विधाताके P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust