________________ 128 स्त्रीचरित्र. - जयचन्द बोले-एकाएक वादल प्रगट होनसें च_न्दको कुछ मलिनता तो नहीं हुई ? - चन्द्रने उत्तर दिया--महाराज ! बादलसे चन्दको - मलिनता होतो कुछ हानि नहीं, परन्तु बादलको जल वृष्टिसे प्यासे पपिहराको प्यास अवश्य बुझनी चाहिये. जयचन्द बोले सोरठा. मिलत कर्म अनुसार, बहुत पपिहरन स्वाति जल। बहुत न उपल प्रहार होत एकही जलदसों॥४॥ जयचन्दके मंत्रीनेभो यह दोहा कहा-- रत्नबिन्दु वर्षे नृपति, सुरपति सम सर्वत्र / हातमागे सूखे रहैं, शिरदरिद्रको छत्र // 5 // ... यह सुन कविचन्द्रने कहा कि भगवान्की इच्छा योंही है तो बस, पृथ्वीराजसे कहा, महाराज जयच न्दको पान दो. * P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust