________________ भाषाटीकासहित. 105 निज चाल छोडि गहि हैं औरनकी धाई॥ -तुरकन हित कार हैं हिन्दू संग लडाई। यवननके चरणहि रहि है शीश नवाई // / अब तजहु वीरवर भारतकी सब आसा॥४॥ रहे हमहुं कबहुं स्वाधीन आर्य बल धारी। हरि विमुख धर्म बिन धन बलहीन दुजारी। आलसी मन्द तन क्षीण क्षधित संसारी॥ सुजसों सहि हैं शिर यवन पादुका त्रासा। अब तजहु वीरवर भारतकी सब आसा॥५॥ यह गाकर देवताने प्रस्थान किया. - सूरजदेव-(शिर उठाकर) इस समय इसमेरे शव समान शरीर पर विष और अमृत किसने एक साथही वरसाया निस्सन्देह मौलवी वेषधारी पंडित विष्णुशर्माजी .P. Ac: Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust