________________ 124 स्त्रीचरित्र कर्णाटकी पृथ्वीराजसे अलग होकर यहां रहती है तथापि उसीको पुरुष समझकर लाज करती है, यह सोच प्रतिहारीको भेजकर कर्णाटकीको सभामें बुलाया, कर्णाटकीको आता देखकर चन्द्रकविने आपने मनमें विचार किया कि इस समय महा धर्म संकट आपडा, जो यह कर्णाटकी शिर ढाक कर महाराज पृथ्वोराजकी लाज करैगी तो जयजन्द्र महाराज पृथ्वीराजको इसी समय पहिचान लेगा, और अभी उपद्रव होने लगेगा इससे क्या उपाय करना चाहिये कि कर्णाटकी लाज न करै, यह विचार कर चन्द्रकविने कर्णाटकीको सुनाकर तुरन्त यह दोहा पढा. ....... दोहा. - कर्णाटक कौशलमयी, तज संकोच दरसार / यह कुशल सब होयगी, कहुनिज दृत्ति विचार // 1 // . चन्द्रकविके दोहेका तात्पर्य समझकर कर्णाटकीने P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. . . . Jun Gun Aaradhak Trust .