________________ '. स्त्रीचरित्र.. त्रिय कन्या पलायन करके प्राण और सम्भ्रम रक्षा करना नहीं चाहती प्राण देकर आत्मभानको रक्षा करती है, में स्वर्गीय महात्मा दाहिर राजकी पुत्र वधू हूं, रणविमुख की कोई नहीं यह कहते हुये कंठ रंध गया आं. सुवोंसे नेत्र पूर्ण होगये. दारकी ओरको हटकर पुत्र वधू मौन होगई. दूत--(रानीसे )-तब क्या यह दास बिदा हो ! रानी--( रुंधे हुये कण्ठसे ) अच्छा. दूत-तो इस मृत्त्यका प्रणाम स्वीकार हो यह कह दूत चला गया. रानी अवेतन होकर भूमिपर गिर पड़ी पुत्र वधूके भी अवेतन होनेसे गिरकर चोट लगी रुधिर प्रवाह होने लगा.. .. अनन्तर चैतन्य पीछे मंत्री और महारानीमें जो बात चीत हुई. सो नीचे लिखते हैं.... . रानी-मंत्री वर मुझको इस समय अधिक विचार करनेकी आवश्यकता नहीं जो उपस्थित है उसीपर हमा रा. ध्यान है, मैं देखती हूं कि मंगलकी कोई आशा - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust