________________ स्त्रीचरित्र. साहस, उत्साह और यवन सेनापतिका पराक्रम देख पाती तो ऐसा नहीं कहती. रानी-तुम यवन सेनाका आडम्बर देखकर भयभीत तृणवत तुच्छ समझते हैं, शत्रुकी असंख्य सेनामें वह / अकेले अचल रहते हैं, का पुरुषोंकीनाई मृत्युका भय कदापि नहीं करते. दूत-महारानीजी, मेरे विलम्ब करनेसे राजकुमार उदिम होंगे, उनका आदेश लेकर मैं यहां आया हूं. और आपकी अनुमतिके लिये खडा हूं.. रानी-दूत, तुम उस क्षत्रियाधमसे कहना कि, दाहिर राजका पुत्र ऐसा का पुरुष, मैं अब ऐसे नराधम पुत्रका मुख नहीं देखना चाहती, यदि यवनोंके निःश्वा स स्पर्शसे उसका तेज सम्पूर्ण विलुप्त न होगया हो, तो कह अपने रक्तसे इस महा पापका प्राय करै, मैं स्वामी हन्ताको उचित शिक्षा देकर क्षत्रिय कुलका यह महा कलंकका धोउंगी, फिर महा पुरुषकी अनुगामिनी होऊंगी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Gun-Aaradhak-Trust