________________ भाषाटीकासहितः है, पितृचरणने न जाने क्यों और किस जीवनके लाभसे जी तेजी चित्तौर छोडदिया और अपने शरीरमें प्राण रहते भी शत्रुओंको प्रवेश करनेका अवसर दिया, धन्य है वीवर, जयमल और पुत्रको कि जिन्होंने उस डूबती हुई मेवाडकी कीर्तिके कुछ तो ठहरने का ठिकाना किया आह -- कैसी वीरता और साहसके साथ प्रबल पराक्रमी शत्रुओंकी - गति रोध किया था, क्या उनकी अक्षय कीर्ति कभी लोप होसकती है, ऐसे पुरुष रत्न क्या हमै सहायक मिलेंगे, जो चार वोर ऐसे साहसी हमें मिलें, तो हम प्रतिज्ञा पूर्वक - मेवाडहिसे क्या सारे भारतसे इनको निकाल दें पर क्या हुआ, प्रतापके वेगको कौन रोक सकता है, यद्यपि इस समय राजस्थानके सब राजाओंने स्वार्थ वश होकर आत्मविस्मरण कर दिया है, इन विधर्मी शत्रुओंके साथ सम्बन्ध करिलिया है, यहां तक कि हमारेही छोटे भाईने अकबरसे मित्रता कर ली है, परंतु क्या इससे हम कभी हताश हो सकते है,कभी नहीं, यदि इन .P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust