________________ स्त्रीचरित्र. कोई इन पाचौंकों भलीभांति मानता है, वही धर्मात्मा मानाजाता है, हे विप्र, आपसे, उस पतिव्रता सत्यशील स्त्रीने जो हमारे पास भेजा सो आपका संब वृत्तान्त ज्ञानदृष्टि से हमने देखलिया, यह सब प्रभाव इन मातापिताकी सेवारूपी तपहीका फल है,अब मैं आपके हितकी एक बात कहताहूं, सो सुनिये,आपने यह अनुचित कर्म किया है. कि जो अपने माता पिताका अपमान करके उनकी विना आज्ञालिये वेद पढनेके अर्थ घरसे चले आये हो, आपके शोकसे वे दोनों अन्धे होगये हैं। इस कारण अब आप शीघ्र अपने घर जाकर अपनी से वासे उनको प्रसन्न करो, आप तपस्वी महात्मा हो धर्मका उल्लघनकरना आपको उचित नहीं, विना मातापिताका प्रसन्न किये तुह्मारा सब कर्म करना वृथा है, इससे हे विप्र, तुम हमारा वचन मानकर अपने घर जाओ, और तन मनसे मातापिताकी सेवा करो, मैं तुमारे कल्याणाको बात कहताहूं; यह सुन वह ब्राम्हण उस धर्मव्याधका -- बहुता प्रशंसा करके अपने घर गया, और अपने माता .P.P.AC.GunratnasurrM.S..