________________ भाषाटीकासहित.. 51 उसके राज्यमें धर्मका और वर्णोका संकर होकर जिधर देखो उधर अधर्मही होने लगता है, जबतक दुर्भिक्ष (अकाल) पडता है, नीतिमें लिखा है, यथा राजा तथा प्रजा, यदि राजा धर्मात्मा होता है तो उसकी प्रजाभी धर्मात्मा होती है, और जो राजा अधर्मी होता है, तो उसको प्रजाभी अधर्मी होजाती है... / व्याध कहता हैं. हे द्विजवर ! अन्य जनों करके मारे. हुए जीवोंके मांसको मैं सदा बेचाकरता उनको कुछ मैं अपने हाथसे नहीं मारता हूं, और मांस नहीं खाता हूं दिनभर उपवास करके, रात्रिमें भोजन करता हूं, ऋतु कालमें ही स्त्रीगमन करता हूं इसीसे त्रिकालकी बातको जानता हूं, यदि इसीप्रकार आपभी धर्मपूर्वक वर्ताव करतेहुये अपने मातापिताकी सेवा करोगे तो आप त्रिकालदर्शी होजाओगे, धर्मपूर्वक बर्ताव करनेके लिये अंतःकरण शुद्धिकी परम आवश्यकता है, अपनी प्रशंसा न करनेवाला, दूसरेकी निन्दा न करनेवाला, गुणसम्पन्न ऐसा मनुष्य प्रायः जगत्भरमें नहीं दीख पडता.. P.P.AC. Gunratnastri.M.S. .Gun Aaradhak Trust .