Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सिद्धान्तसारः
तदभावे ह्यनिष्टोऽपि सर्वज्ञाभाव इष्यते । तेषामतो वचश्चारु तदीयं न कदाचन ॥ ५ तदेतत्कथमित्येवं शंकनीयं न धोधनैः । न ह्यतीन्द्रियविज्ञानं सर्वज्ञं साधयन्ति ते ॥ ६
१८)
होता है । उपर्युक्त घटका रूपज्ञान चक्षुः सन्निकर्ष से हुआ । सुखादिकमें त्रिसन्निकर्षज ज्ञान है । आत्माका मनसे संबंध होता है और मनका सुखसे संबंध होकर सुख जाना जाता है । योगिओंको आत्मा और मनका संबंध होनेसे ज्ञान उत्पन्न होता है ऐसा सन्निकर्षवादी कहते हैं ।
(२.५
आचार्य इसका खंडन इस प्रकार करते हैं- सन्निकर्ष होनेसेही यदि ज्ञान होता, तो घटके समान आकाशादिकके साथभी चक्षुका संबंध है तथापि वह सन्निकर्ष आकाशविषयक ज्ञानको उत्पन्न नहीं करता है । सन्निकर्ष संशयादिकोंमें भी होनेसे ऐसे सन्निकर्षकोभी प्रमाण मानना पडेगा । कज्जलसे नेत्रका संनिकर्ष होनेपर भी कज्जल-विषयक ज्ञान वह उत्पन्न नहीं करता है । आम्रफलके रूपके साथ चक्षुका जैसा सम्बंध है, वैसा उसके रसके साथ भी है, तोभी रसका ज्ञान नहीं होता । अतः सन्निकर्ष ज्ञानका असाधारण कारण नहीं है, इसलिये वह प्रमाण नहीं है । सन्निकर्षसे ज्ञान होता, तो उसमें क्रमवतपना मानना पडेगा परन्तु एकही समयमें चंद्रका और शाखाका ज्ञान होता है । तथा सन्निकर्ष होनेसे यदि ज्ञान हो जाता तो सूक्ष्म परमाणुकाभी ज्ञान होना चाहिये क्योंकि आपने उनके साथ चक्षुरिन्द्रिय सन्निकर्ष माना है । सन्निकर्षसे यदि ज्ञान होता है तो व्यवहित पदार्थोंका ज्ञान नहीं होना चाहिये परंतु भूमिके अन्तर्गत पदार्थों को उनके साथ सन्निकर्ष न होनेपर भी अञ्जनसहित नेत्र देखता है । तथा सूक्ष्म-परमाणु, देशान्तरितमुट्ठी में रखा हुआ पदार्थ, दूरार्थ - मेरु आदिक, कालान्तरित - रामरावणादिक सन्निकर्ष वादियोंको अप्रमेय होंगे अर्थात् उनके साथ इन्द्रियोंके सम्बन्धादिकों का अभाव है ॥ ४ ॥
नैयायिक, यौग, सांख्योंने संपूर्ण पदार्थोंको जाननेवाला अर्थात् सर्वज्ञ माना है परंतु सन्निकर्षको प्रमाण मानने से संपूर्ण पदार्थों के साथ आत्मा, इन्द्रिय और मनका सम्बंध होना शक्य नहीं है, अतः सर्वज्ञाभाव होगा, जो कि उनको अनिष्ट है । सन्निकर्ष वर्तमानकालीन पदार्थोंकाही हो सकता है, वहभी जगतके संपूर्ण पदार्थों के साथ होना नितरां असंभव है । ऐसी अवस्थामें वर्तमान कालीन पदार्थभी - संपूर्णतया नहीं जाने जाते हैं । भविष्यत्कालीन पदार्थ - उत्पन्न होनेवाले होने से वर्तमान कालीन इंद्रियोंका उनके संबंध होना असंभव है, भूतकालीन पदार्थ नष्ट होने से इन्द्रियोंके साथ सम्बद्ध हो नही सकते हैं, अतः भूतभविष्यके संपूर्ण पदार्थोंका ज्ञान न होने से नैयायिकादिकोंके मतमें सर्वज्ञत्वका अभाव होगा । इसलिये सन्निकर्षवादी नैयायिकादिकों का सन्निकर्षवाद सुंदर - प्रामाणिक नहीं हैं ॥ ५ ॥
नैयायिकादिकोंने सर्वज्ञ माना है अतः आप सर्वज्ञाभावका दोष उनको क्यों देते हैं ऐसीभी बुद्धिमानोंको शंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि अतीन्द्रिय ज्ञानवाले सर्वज्ञको वे सन्निकर्षवादी सिद्ध
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