Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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३० )
सिद्धान्तसारः
( २.९०
या पूर्व पञ्चधा प्रोक्ता चूलिका भेदकोविदैः । तद्भेदान्स्फुटभेदेन निगदामि यथाक्रमम् ॥ ९० कोटिद्वयं तथा लक्षा नवैकोननवतिस्तथा । सहस्राणां शतं द्वन्द्वं पदानि परिकीर्तिता ॥ ९१ जलस्तम्भन हेतुनां मन्त्रादीनां प्रकाशिका | जलपूर्वगता चेयं चूलिका गदिता जिनैः ॥ ९२ एतान्येव पदान्युक्ता चूलिकास्थलमागमे ' । भूगता कारणानेकमन्त्रतन्त्रादिसूचिका ॥ ९३ इन्द्रजालाद्यनेकार्थक्रियाकाण्डप्ररूपिका । एतत्पदप्रमाणैव मायादिर्गदिता सताम् ॥ ९४ व्याघ्रसिंहादिसद्रूपमन्त्रतन्त्रप्रकाशिका । इयन्त्येव पदात्युक्ता सुरूपा गदिता जिनैः ॥ ९५ आकाशगतिसद्धेतुमन्त्रतन्त्रावबोधिका । आकाशादिगता ज्ञेया पूर्वसङख्यापदप्रमा ॥ ९६ पूर्वेषु हि तं पूतमतः पूर्वगतं मतम् । तच्चतुर्दशधा प्रोक्तं निगदामि यथापदम् ॥ ९७ प्रौव्योत्पादव्ययानेकसाधुधर्मप्रकाशकम् । जीवस्योत्पादपूर्वं तत्कोटयेकपदपूर्वकम् ॥ ९८ अङ्गानामग्रभूतार्थनिवेदनपरं बलम् ५ । लक्षाः षण्णवतिः पूतं पूर्वमग्रायणीयकम् ॥ ९९
भेदज्ञोंने पांच प्रकारकी चूलिकायें कही हैं उनके भेदोंका स्पष्टतया मै यथाक्रम वर्णन करता हूं ।। ९० ।।
( पंचचूलिका ) - जलगताचूलिकाकी पदसंख्या दो कोटी नौ लाख नवासी हजार दो सौ है । इस चूलिका में जलस्तंभनके कारणमंत्रोंका वर्णन है तथा अग्निस्तम्भन, अग्निभक्षण, अग्नि में बैठना और अग्निप्रवेश तथा तदर्थ तपश्चरण आदिका वर्णन है । स्थलगतचूलिकाकेभी इतनेहि पद हैं। इस चूलिका में मेरु, कुलाचलभूमि आदिमें प्रवेश, शीघ्रगमन आदिके कारण मंत्रतंत्रादिक हैं । मायागताचूलिका में इन्द्रजालादि अनेक अर्थोंके क्रियाकाण्डोंका निरूपण किया है । इसकी भी पदसंख्या जलगतचूलिकाके समान ही है । रूपगताचूलिकामें वाघसिंहादिके रूप धारण करनेके मंत्रतंत्रका वर्णन है । इसकी पदसंख्याभी उपर्युक्त जलगतचूलिकाके समान है । आकाशगतचूलिका में आकाशगमनके कारण मंत्रतंत्र आदिका वर्णन है । इसकी पदसंख्याभी जलगता के समान है ।। ९१-९६ ।।
( चौदह पूर्व ) दृष्टिवादका पूर्व नामक चौथा भेद है उसके उत्पादपूर्वगतादिक चौदह भेद आचार्यने कहे हैं । सर्व जीवादिक अर्थों में जो चला गया है इसलिये उसे पूर्वगत कहते हैं । यह पूर्वगत पवित्र ज्ञान है । उसके चौदह भेद उनकी पदसंख्याके साथ मैं ( नरेन्द्रसेनाचार्य ) कहता हू ।। ९७ ।।
उत्पाद पूर्व की पदसंख्या एक कोटि प्रमाण है । उसमें जीवके उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य आदि अनेक धर्मोका स्वरूप कहा है तथा मुनियोंके धर्मोका वर्णन किया है ॥ ९८ ॥
अग्रायणीय पूर्व की पदसंख्या छयानवे लाख प्रमाण है। इस पवित्र पूर्व में अंगों के प्रधानभूत पदार्थों का वर्णन करनेका सामर्थ्य है- अर्थात् सातसौ सुनय तथा दुर्णय, पञ्चास्तिकाय, षड्द्रव्य, सप्ततत्त्व, नवपदार्थ आदिका वर्णन है ।। ९९ ।।
१ आ. गामने २ आ. संख्य ३ सो. सर्वेषु ४ आ. संख्यकम् ५ आ. वरम् ६ आ. आग्रायणीयका
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