Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen  Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ -१२. ९३) सिद्धान्तसारः उत्पत्तिस्तपसां पदं च यशसामन्यो रविस्तेजसाम् । आदिः सद्वचसां विधिः श्रुतरमासान्निध्यनिःश्रेयसाम् ।। आवासो गुणिनां पिता च शमिनां माता च धर्मात्मनाम् । अज्ञातः कलिना जगत्सु बलिना श्रीभावसेनस्ततः ॥ ९१ ख्यातस्ततः श्रीजयसेननामा जातस्तपःश्रीक्षतदुष्कृतौघः । सत्तर्कविद्यार्णवपारदृश्वा विश्वासगेहं करुणास्पदानाम् ॥ आचार्यः प्रशमैकपात्रमसमः प्रज्ञादिभिः स्वर्गुणैः । पट्टे श्रीजयसेननामसुगुरोः श्रीब्रह्मसेनोऽजनि ॥ ९२ यज्जल्पाम्बुधिमध्यमग्नवपुषः शश्वद्विकल्पोर्मिभिः। जल्पाकाः परवादिनोऽत्र विकलाः के के न जाताः क्षितौ ॥ तस्मादजायत गणी गुणिनां वरिष्ठो भव्याम्बुजप्रतिविकासनपद्मबन्धुः । कन्दर्पदर्पदलने भुवनैकमल्लो विख्यातकोतिरवनौ कविवीरसेनः ॥ ९३ ( श्रीभावसेन यतिराज । )- गोपसेन आचार्यसे भावसेन यतिराज उत्पन्न हुए। वे तपोंका उत्पत्तिस्थान थे। यशोंका निवासगृह थे । दूसरे सूर्यके समान तेजका आश्रम थे। शुभ सुंदर वचनोंको वे आदि थे । अर्थात् शुभ सुंदर उपदेश वे भव्यजनोंको देते थे। श्रुतलक्ष्मीका सांनिध्य धारण करनेवाले निःश्रेयस्का-मोक्षमार्गका वे निधि थे। वे गुणियोंके आश्रयदाता, शम धारण करनेवाले मुनियोंके पिता और धर्मात्माओंके लिये माताके समान थे। इस जगतमें बलवान् कलहोंका जिन्हें ज्ञान नहीं था ऐसे भावसेन मुनि श्रीगोपसेन गुरुसे प्रगट हुए ॥ ९१ ॥ ( श्रीजयसेन गुरु । )- तपोलक्ष्मीके द्वारा जिन्होंने पापसमूह नष्ट किया है, जो निर्दोष तर्कविद्यारूप समुद्रके पारगामी थे और करुणासे स्थानरूप मुनिजनोंके लिये विश्वासगृह थे ऐसे प्रसिद्ध जयसेन नामक गुरु भावसेन मुनीश्वरके अनंतर हुए। ( ब्रह्मसेन गुरु । )- श्रीजयसेन नामक सद्गुरुके पट्टपर श्रीब्रह्मसेन नामक मुनिराज हुए; जो कि प्रशमके अद्वितीय पात्र थे। तथा स्वसमयज्ञान, परसमयज्ञान और न्यायादिक शास्त्रोंका ज्ञान इत्यादि गुणोंसे शोभते थे। निर्दोष जल्परूप समुद्र में उनका देह मग्न हुआ था वे हमेशा विकल्परूप तरंगोंको धारण करते थे। उनके सामने इस भूतलपर कुत्सितवाद करनेवाले कौन कौन अन्यमतीय विद्वान् वादसामर्थ्यसे हीन नहीं हुए हैं ? ।। ९२ ॥ ( कवि वीरसेन । )- जो भव्यकमलोंको विकसित करने के लिये पद्मबंधु सूर्य हैं, जो मदनका गर्व दलित करनेमें जगत में अद्वितीय मल्ल हैं, जो गुणियोंमें महान् हैं, जिनकी कीर्ति भूतलमें प्रसिद्ध है ऐसे श्रीवीरसेन आचार्य ब्रह्मसेन गुरुसे उत्पन्न हुए अर्थात् ब्रह्मसेनके शिष्य वीरसेन उनसे पट्टपर आरूढ हुए ॥ ९३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324