Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen  Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 323
________________ २९६) सिद्धान्तसारः श्री वीरसेनस्य गुणादिसेनो जातः सुशिष्यो गुणिनां विशेष्यः । शिष्यस्तदीयोऽजनि चारुचित्तः सदृष्टिचित्तोऽत्र नरेन्द्रसेनः ॥ गुणसेनोदय सेना जयसेनो संबभूवुरतिवर्याः । तेषां श्रीगुणसेनः सूरिर्जातः कलाभूरिः ॥ ९४ दुष्ष मानिकटवर्तिनि कालयोगे, नष्टे जिनेन्द्र शिववर्त्मनि यो बभूव । आचार्य नामनिरतोऽत्र नरेन्द्रसेनः । तेनेदमागमवचो विशदं निबद्धम् ॥ ९५ Jain Education International इति श्रीसिद्धान्तसारसंग्रहे' पण्डिताचार्य नरेन्द्र सेनाचार्यविरचिते द्वादशोऽध्यायः । समाप्तोऽयं सिद्धान्तसारसंग्रहः । ( गुणसेन मुनि और नरेन्द्रसेन । ) - श्रीवीरसेनाचार्य के शिष्य गुणसेन हुए जिनमें शास्त्राभ्यासकी विशेषता थी । तथा गुणसेनसूरिके नरेन्द्रसेन नामक शिष्य हुए, उनका चित्त सुंदर था अर्थात् कोपादिकषायोंसे दूर था और जिनवाणीके ज्ञानसे भूषित तथा वे सम्यग्दृष्टि थे । ( गुणसेन, उदयसेन और जयसेन आचार्य । ) - श्रीवीरसेनसूरीके शिष्य गुणसेन, उदयसेन और जयसेन सूरी हुए। उनमें श्रीगुणसेन सूरि अनेक कलाओंके धारक हुए ।। ९४ ॥ ( १२. ९४– ' ( सिद्धान्तसार - सङग्रह ग्रंथके कर्ता श्री नरेन्द्रसेनाचार्य । ) - दुष्षमाके निकटवर्त कालके योगसे श्रीजिनेश्वरका कहा हुआ मोक्षमार्ग नष्ट होनेपर जो आचार्योंके नाममें तत्पर हैं ऐसे नरेन्द्रसेन आचार्य हुए और उन्होंने इस विशद आगमवचनकी रचना की अर्थात् 'श्री सिद्धान्तसारसंग्रह ' ग्रंथ रचा है ।। ९५ ।। श्री पण्डिताचार्य श्रीनरेन्द्रसेनाचार्य विरचित सिद्धान्तसारसङ्ग्रहमें बारहवा अध्याय समाप्त हुआ । १ आ. इति सिद्धान्तसारसङग्रहे आचार्यश्रीनरेन्द्रसेनविरचिते द्वादशोऽध्यायः समाप्तः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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